मीर सुलतान ख़ान : शतरंज की दुनिया का बादशाह

सब बुरे मुझ को याद रहते हैं  जो भला था उसी को भूल गया 1930 की दिसंबर थी और इंग्लैंड

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कुछ क़ैद में पड़े हैं, हम क़ब्र में पड़े हैं, दिन ख़ून का हमारे प्यारो न भूल जाना…

ये नज़्म “शहीदों के सन्देश” के नाम से एक नामालूम इंक़लाबी शायर ‘प्रेमी’ ने 1930 में लिखा था, जो दिल्ली

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