भारत के सबसे सफ़ल रेलमंत्री सी.के. ज़ाफ़र शरीफ़
3 नवम्बर 1933 को कर्नाटक के चित्रादुर्गा में जन्मे करीम जाफ़र शरीफ़ 21 जून 1991 से 16 अक्तुबर 1995 तक रेल मंत्री रहे। इस दौरान रेलवे ने काफ़ी मुनाफ़ा कमाया; जिसका पुरा क्रेडिट जाफ़र शरीफ़ को जाता है।
कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक ज़ाफ़र शरीफ़ 1971 में पहली बार सांसद चुने गए। इसके बाद वो लगातार कांग्रेस के टिकट पर सात बार सांसद चुने गए, इस दौरान सांसद के रूप में उनका कार्यकाल 25 साल का रहा।
Challakere Kareem Jaffer Sharief (3 November 1933 – 25 November 2018) was an Indian politician from Karnataka. He was one of the seniormost #IndianNationalCongress leaders. He was the Railways Minister in the Government of India from 1991–95. #CKJafferSharief#JafferSharief pic.twitter.com/iqhOWz2KKS
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) November 25, 2018
ज़ाफ़र शरीफ़ ने अपनी ज़िदंगी में जो कुछ भी हासिल किया है उसके पीछे उनकी योग्यता है। वरना जो आदमी ड्राइवरी करते हुए अपने मालिक को रेलवे स्टेशन छोड़ने व लेने जाता रहा हो वह एक दिन इस देश का रेल मंत्री बन बैठेगा और अपनी चाल से रेल को दौड़ाने के लिए उसकी पटरियों से लेकर इंजन तक बदल डालेगा इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
जाफ़र शरीफ़ की सफ़लता की कहानी बहुत रोचक है। यह कांग्रेस पार्टी ही है जिसने हमेशा निजी वफ़ादारों को ज़्यादा अहमियत दी और उन्हें फ़र्श से अर्श तक पहुंचा दिया।
यह किस्सा कांग्रेस के विभाजन के पहले का है। उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस निजलिंगप्पा व पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता इंदिरा गांधी को पसंद नहीं करते थे। उन्होंने उन्हें कांग्रेस से निकालने का मन बना लिया था। एक दिन वे निजलिंगप्पा व संजीव रेड्डी को हवाई अड्डे छोड़ने जा रहे थे। जाफ़र शरीफ़ उस समय उनके ड्राइवर थे व हिंदी, उर्दू व कन्नड़ जानते थे। उन्होंने दोनों नेताओं की बातचीत को बहुत ध्यान से सुना।
जैसे ही उन्होंने यह सुना कि इंदिरा गांधी को पार्टी से निकालने की तैयारी चल रही है वे, हवाई अड्डे से लौटकर सीधे टेलीफ़ोन बूथ पर गए और इंदिरा गांधी को फ़ोन करके सारी बातें बता दी। इंदिरा गांधी ने समय रहते सभी ज़रूरी क़दम उठा लिए और उन बुज़ुर्ग नेताओं को उनके ही खेल में मात दे दी। फिर उन्होंने जाफ़र शरीफ़ को ऐसा उपकृत किया जिसकी वे कल्पना ही नहीं कर सकते थे। उन्हें लोकसभा का उम्मीदवार बनाया। वे बेंगलुरू से सात बार सांसद रहे। केंद्र में अनेक मंत्रालयों के स्वामी बने। इसमें कोयला व रेल मंत्रालय भी थे। रेल मंत्रालय में रहते हुए उन्होंने तमाम कारनामे किए। देसी बीएचचईएल कंपनी की अनदेखी करके स्विट्जरलैंड की एबीबी कंपनी से 532 करोड़ रुपए के बिजली के इंजन खरीदे। पूरे देश की रेलवे लाइनों को ब्राडगेज में बदल दिया।
उन्होंने महिलाओं को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तब वे एकमात्र ऐसे मंत्री होते थे जिनकी निजी सचिव महिला थी।
चूंके संसद भवन की खानपान व्यवस्था रेलवे के पास ही है। उन्होंने वहां भी बड़ी तादाद में महिलाओं की भर्ती करवा दी।
जैसा आप जानते हैं हर सांसद को प्रति वर्ष सांसद विकास निधि के रूप में एक नियत राशि मिलती है. इसका प्रयोग सांसद को अपने क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए करना होता है. कई बार ये होता है कि सांसद ये पैसा खर्च ही नहीं करते या कहां खर्च करते हैं, ये पता भी नहीं चलता. पर एक सांसद के रूप में ज़ाफ़र शरीफ़ को ये शर्फ़ हासिल है कि उन्होने अपनी सांसद विकास निधि का भरपूर उपयोग करते हुए कई स्कुल, कॉलेज, अनाथालय और कम्पयूटर सेंटर खोले।
बाद में वे कांग्रेस में कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने गए। मगर कांग्रेस के पतन के साथ उनका भी बुरा समय शुरू हो गया। पिछले आम चुनाव में उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया। महज 10 साल के उनके ही बेटे व पत्नी इस दुनिया से चले गए। कभी पार्टी छोड़ने का ऐलान किया तो कभी जनता दल (एस) के साथ बात बढ़ाने की कोशिश की मगर हर जगह विफ़लता ही हाथ लगी। अब 25 नवम्बर 2018 को 84 साल की उम्र में उनका इंतक़ाल हो गया है।