वासेपुर: धनबाद के दो बड़े उद्योगपति एम.ए. जब्बार और एम. ए. वासे की विरासत

ये कहानी है धनबाद के दो सबसे बड़े और प्रसिद्ध उद्योगपतियों की जो अपने सगे भाई भी थे। ये कहानी है सफ़लता की चोटी पर पहुंचने वाले दो भाइयों की जिनका व्यापार तो आसमां को छू रहा था, लेकिन उनके क़दम हमेशा धरती पर ही टिके रहे।

वासेपुर की छवि ख़राब करने में फ़िल्मों का बड़ा हाथ रहा है। ख़ैर, धनबाद के इस इलाके को बसाने वाले दो प्रसिद्ध भाई थे, जिनका नाम एम. ए. वासे और एम. ए. जब्बार था। ये दोनों भाई रांची के प्रसिद्ध वकील सैयद अनवर हुसैन ख़ान के मौसेरे भाई, और एडवोकेट सैयद मोहिउद्दीन अहमद ऊर्फ बन्नू बाबू के भांजे थे। इन दोनों भाईयों ने 1940 की दहाई में रांची से अपना सफ़र शुरु किया और धनबाद में जा कर बस गए। शुरू शुरु में मिलिट्री कैंटीन के कॉन्ट्रैक्ट से अपने व्यवसाय का प्रारंभ किया। धीरे धीरे जब व्यावसाय में सफ़लता प्राप्त हुई, तो कोयला कंपनियों से बड़े बड़े कॉन्ट्रैक्ट लेने लगे। इस तरह धनबाद भूली में बी. सी. सी. एल. के लिए एक विस्तृत हाउसिंग टाउनशिप का निर्माण किया। साथ ही साथ मैथन डैम की हाउसिंग सोसाइटी के भी निर्माता बने। ये उनके अनेक प्रोजेक्ट्स के दो उत्कृष्ट नमूने थे जिस की वजह से उनकी शोहरत चारों तरफ़ हो गई।

एस.एम. जब्बार

भाईयों ने अपनी दौलत से वासेपुर इलाक़े की समस्त ज़मीन ख़रीद डाली और बाहर से कोयला खदानों और कंपनियों में काम करने के लिए आए हुए कर्मियों में उसे आबंटित कर दिया। इस तरह धीरे धीरे वासेपुर, धनबाद में एक अलग पहचान के साथ उभरने लगा। प्रारंभ में इस एरिया का नाम कुछ दिनों के लिए जब्बार नगर ही था, लेकिन बाद में छोटे भाई ने इस का नाम बदल कर अपने बड़े भाई के नाम पर वासेपुर कर दिया। हालांकि वासेपुर में जब्बार साहब के नाम पर अभी भी जब्बार कैंपस मौजूद है। जब्बार साहब की बनवाई हुई जब्बार मस्जिद वासेपुर की अनोखी पहचान है, जो अब भी आबाद और व्यवस्थित है।

दोनों भाईयों के पास दौलत का अंबार था। बंधुओं ने वासेपुर में एक आलीशान कोठी बनवाई, जो अब भी मौजूद है। समस्त कोठी सेंट्रलाइज्ड एयर कंडीशंड थी। 1963 में एक भाई के पास डॉज, तो दूसरे भाई के पास प्लायमाउथ जैसी गाडियां थीं।

Senior Advocate Syed Anwar Hussain Khan of Ranchi (1907-82)

जब्बार साहब, वासे साहब, और दोनों भाईयों की पत्नियां जब्बार मस्जिद के समीप क़ब्रिस्तान में दफ़न हैं। वासे साहब के बारे में कहते हैं के उन्होंने कभी अपनी तस्वीर नहीं बनवाई, लेकिन जब्बार साहब की तस्वीर इस लेख के साथ संलग्न है।

ज़रूरत है फ़िल्म से हट कर इतिहास को पढ़ने की, नहीं तो सच भी मसाला फ़िल्मों जैसा ही लगेगा।

 


Share this Post on :
Translate »