स्वामी विवेकानंद के भाई जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा थे।
4 सितम्बर 1880 को उस समय के भारत की राजधानी कोलकाता में एक क़द्दावर बंगाली ख़ानदान में पैदा हुए भूपेंद्रनाथ दत्त हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा थे। एक क्रांतिकारी के इलावा दत्त लेखक और समाजशास्त्री थे। साथ ही वो स्वामी विवेकानंद के भाई भी थे। भूपेंद्रनाथ दत्त के वालिद का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कलकत्ता हाई कोर्ट में एक वकील थे और वालिदा का नाम भुवनेश्वरी दत्त था जो हाऊस वाईफ़ थीं। दो बड़े भाई थे, जिनका नरेंद्रनाथ दत्त (बाद में स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना गया) और महेंद्रनाथ दत्त था, यही वजह था के भूपेंद्रनाथ दत्त के ख़ानदान का बंगाल के क़द्दावर लोगों से नज़दीकी तालुक़ात थे।
इसी दौरान हो रहे अंग्रेज़ो के ज़ुल्म ने उन्हे और इंक़लाबी बनाना शुरु किया। भूपेंद्रनाथ दत्त ने हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी में शामिल होने का फ़ैसला किया, और 1902 में प्रथमत नाथ मिश्रा द्वारा चलाई जा रही बंगाल क्रांतिकारी सोसायटी में शामिल हो गए जिसे अनुशीलन समिति के नाम से भी जाना जाता था। बाद में ये ‘युगांतर आन्दोलन’ के नाम से भी जाना गया। 1906 में वे अख़बार ‘युगांतर पत्रिका’ के इडीटर बने और सन 1907 मे हुई अपनी गिरफ़्तारी तक इस पद पर बने रहे। यह अख़बार बंगाल की क्रांतिकारी पार्टी ‘युगांतर आन्दोलन’ का मुखपत्र था, इस दौरान में भूपेंद्रनाथ दत्त श्री अरबिंदो और बरिंदरा घोष के काफ़ी क़रीबी सहयोगी बने।
1907 में, भूपेंद्रनाथ दत्ता को ब्रिटिश पुलिस ने देशद्रोह और बग़ावत के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया और एक साल क़ैद बा-मुशक़्क़त की सज़ा सुनाई। 1908 में जेल से छूटने पर भूपेंद्रनाथ दत्त को ‘अलीपुर बम कांड’ में फंसाने की कोशिश की गई, तब वो अपने साथियों की मदद से हिन्दुस्तान से बाहर अमेरिका चले गए। और वहां के ‘इंडिया हाऊस’ में कुछ दिन रहे और अमेरिका के ब्राऊन युनिवर्सटी से एम.ए. मुकम्मल किया। भूपेंद्रनाथ दत्त अमेरिका में वजूद में आई ‘ग़दर पार्टी’ से भी जुड़े, और यहीं समाजवाद और साम्यवाद की जानकारी जुटाई। और एक मिशन के तहत पहली जंग ए अज़ीम यानी प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी चले गए। वहीं क्रांतिकारी सरगर्मीयों में लिप्त हो गए।
भूपेंद्रनाथ दत्त को जर्मनी की राजधानी बर्लिन में सन 1916 में इंडियन इंडिपेंडेंस समिति का सिक्रेट्री बनाया गया; इस समिति को बर्लिन कमिटी भी कहते हैं। इस पद पर 1918 तक बने रहे। भूपेंद्रनाथ दत्त 1920 में जर्मन ऐंथ्रोपोलॉजिकल सोसाइटी और 1924 में जर्मन ऐशियाटिक सोसाइटी से जुड़े। भूपेंद्रनाथ दत्त 1921 में रुस की राजधानी मौस्को में हुए कॉमिनटाउन में शामिल होने गए। उनके साथ मानेंदर नाथ रॉय और बिरेन्द्रनाथ दास गुप्ता ने भी कमेंट्रन में भाग लिया।
कॉमिनटाउन को कम्युनिस्ट इंटरनेशनल या तृतीय इंटरनेशनल भी कहते हैं जो एक अन्तरराष्ट्रीय साम्यवादी संगठन था जो पूरे विश्व को साम्यवादी बनाने की वकालत करता था जिसकी बुनियाद 1919 में व्लादिमीर लेनिन ने डाली थी और 1943 में इसका ख़ात्मा जोसेफ़ स्टालीन ने किया था। भूपेंद्रनाथ दत्त ने 1921 में हुए इस कमेंट्रन के दौरान उस वक़्त के हिन्दुस्तान के सियासी हालात पर एक रिसर्च पेपर व्लादिमीर लेनिन के सामने पेश किया। भूपेंद्रनाथ दत्त ने 1923 में जर्मनी की हैम्बर्ग युनिवर्सटी से डॉक्टरेट की डिग्री यानी पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। भूपेन्द्रनाथ दत्त 1925 में वापस हिन्दुस्तान लौट आए और इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल होने का फ़ैसला किया।
भूपेन्द्रनाथ दत्त 1927 में बंगाल कांग्रेस के हिस्सा बने और 1929 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। भूपेन्द्रनाथ दत्त ने 1931 में कराची में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में किसानों, मजदूरों के हित संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कराने में अहम रोल अदा किया। इस अधिवेशन में ही कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज्य को परिभाषित किया और बताया कि जनता के लिये पूर्ण स्वराज्य का अर्थ क्या है। कांग्रेस ने यह भी घोषित किया कि ‘जनता के शोषण को समाप्त करने के लिये राजनीतिक आजादी के साथ-साथ आर्थिक आजादी भी आवश्यक है’।
उसके बाद भूपेन्द्रनाथ दत्त ने अपना ध्यान मज़दूरो को संगठित करने पर लगाया। भूपेंद्रनाथ दो बार अखिल भारतीय मज़दूर संघ के अध्यक्ष भी रहे। समाज सुधार के कामों में भी भूपेंद्रनाथ दत्त बराबर भाग लेते रहे। वे जाति-पांत, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव के विरोधी थे।भूपेंद्रनाथ दत्त को उनकी राजनीतिक गतिविधियों के वजह कर कई बार गिरफ़्तार भी किया गया, क्रांतिकारी पत्रकारिता से अपनी क्रांतिकारी और राजनीतिक गतिविधियों को शुरू करने वाले भूपेंद्रनाथ दत्त एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्हे कई ज़ुबान पर उबूर हासिल था। उन्होने बंगाली, अंग्रेज़ी, फ़ारसी, हिन्दी और जर्मन ज़ुबान में हिस्ट्री, सोसोलाजी और सियासत पर कई किताबें लिखी।
‘डाइलेक्टिक्स ऑफ़ हिंदू रिच्यूलिज़्म’ ‘डाइलेक्टिक्स ऑफ़ लैंड-इकॉनामिक्स ऑफ़ इंडिया’ ‘स्वामी विवेकानंद पैट्रियट-प्रोफ़ेट’ ‘सेकंड फ़्रीडम स्ट्रॅगल ऑफ़ इंडिया’ ‘ऑरिजिन एण्ड डेवलपमेंट ऑफ़ इंडियन सोशल पॉलिसी’ वग़ैरा उनकी लिखी हुई कुछ मशहुर किताबें हैं। 26 दिसंबर 1961 को भूपेंद्रनाथ दत्त का इंतक़ाल कोलकाता में 81 साल के उम्र में हो गया।
Md Umar Ashraf
The beautiful and united India of yore has,alas, gone in hands of utterly selfish ultures who just cannot tolerate the joy of common folks living in harmony, sympathizing with eachother without minding in each other,s business.just so much peaceful it used to be once upon a time
It looks like another tragic era of slavery and colonialism is looming large on nation.
This time it will be Gujrati business imperialism.brut , inhuman and utterly selfish.