जब टीपू के वारिस को सुल्तान बनाने के लिए मिल कर लड़े हिन्दु और मुसलमान!
भारतीय इतिहास में सन 1857 की क्रांति को हिन्दुस्तान की पहली जंग ए आज़ादी के रूप में याद किया जाता है हालांकि इससे पहले भी कई छोटे युद्ध हो चुके थे। इस क्रम में सबसे पहली पहल सन 1806 में आज ही के दिन 10 जुलाई को की गई थी। वेल्लोर म्यूटिनी के नाम से मशहूर इस जंग में ईस्ट इंडिया कंपनी के हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने अंग्रेज़ो के खिलाफ जंग छेड़ दी थी।
हालांकि यह जंग 1857 की ही तरह धार्मिक कारणों के आधार पर शुरू हुई थी। इस जंग को हिन्दुस्तान की तारीख़ में आज़ादी की पहली कोशिश के तौर पर याद किया जाता है।
नवंबर 1805 में ब्रिटिश कंपनी ने फ़ौज के ड्रेस कोड में कुछ बदलाव कर दिया था जिसमें हिन्दू सपाही अपने पेशानी पर तिलक नहीं लगा सकते थे और मुसलमान सिपाही के लिए अपनी दाढ़ी कटाना ज़रुरी कर दिया गया था, जो खुले तौर पर धर्मिक मामले में दख़ल माना गया।
मई 1806 में इन नियमों के खिलाफ़ खड़े होकर वेल्लोर में मद्रास आर्मी विंग के एक हिन्दू तथा एक मुस्लिम सिपाही ने आंदोलन छेड़ दी जिसे बाद में औऱ सिपाहीयों का साथ मिला, पर इसे बग़ावत समझा गया और इन दोनो हिन्दु और मुसलमान सिपाहीयों को 90-90 कोड़े मार कर नौकरी से बेदख़ल कर दिया गया औऱ बाक़ी 19 सिपाहीयों को 50-50 कोड़े मारे गए औऱ उऩ्हे ब्रिटिश कंपनी से माफ़ी मांगने पर मजबुर किया गया।
July 10, 1806: The #VelloreMutiny, the first instance of a mutiny by Indian sepoys against the British #EastIndiaCompany, broke out. It lasted only one day, but it was brutal as mutineers seized the Vellore Fort and killed or wounded 200 British troops. #TipuSultan #HeroOf1857 pic.twitter.com/nTFxJPaq5Y
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) July 9, 2018
इस वाक़ीये ने सिपाहीयों मे गुस्सा भर दिया, बग़ावत की तैयारी शुरु हो गई पर उन्हे एक लीडर की ज़रुरत थी, तब उन्होने टीपु सुल्तान के वारिसों को अपना नेता माना जो वेल्लोर क़िले में ब्रिटिश कम्पनी द्वारा नज़रबन्द कर दिए गए थे।
इस विद्रोह में टीपू सुल्तान के वारिसों ने सिपाहियों का साथ देने का वादा किया औऱ सिपाहीयों ने भी टीपू सुल्तान के वारिसों के तईं अपनी वफ़ादारी का वचन दिया, 9 जुलाई 1806 को टीपु सुलतान की बेटी शादी थी, टीपु सुल्तान के वारिसों को अपना नेता मानते हुए बाग़ी सिपाही शादी में हिस्सा लेने के बहाना से वेल्लोर क़िले में घुसे और अगले ही दिन वेल्लोर क़िले पर मैसूर रियासत के झण्डे को फहरा दिया, टीपु सुल्तान के दुसरे बेटे फ़तेह हैदर को सुल्तान घोषित किया गया, इस तरह विद्रोहियों ने टीपू सुल्तान के बेटों की ताक़त को फिर से मज़बूत करने की कोशिश भी की।
विद्रोह शुरू होने के कुछ ही देर में विद्रोही सिपाहियों ने शहर में मौजूद सभी ब्रिटिश सिपाहियों और अफ़सरों में मार-काट मचा दी। विद्रोहियों ने वेल्लोर क़िले पर कब्ज़ा करके 200 ब्रिटिश सिपाहियों को मारा और ज़ख़्मी कर दिया, इसी बीच एक ब्रिटिश सिपाहियों भाग कर नज़दीक के ब्रिटिश फ़ौज की टुकड़ी के पास आरकोट जा पहुंचा। जहां से फ़ौरन ही सर रोलो गिलेस्पी की अगुवाई में एक बड़ी फ़ौज की टुकड़ी रवाना की गई और उसने जल्द ही इस विद्रोह पर काबू भी पा लिया, यह विद्रोह एक ही दिन चला, ये बगावत 1857 की क्रांति से 50 साल पहले अंजाम दी गई, इसके विफ़ल होने के कई कारण हैं।
विद्रोह समाप्त होने के बाद लगभग सभी विद्रोही सिपाहियों को या तो फांसी की सज़ा दी गई या फिर गोली मार कर शहीद कर दिया। कुछ ही घंटे चली इस जंग में विद्रोह सिर्फ वेल्लोर शहर तक ही महदुद रहा पर इस विद्रोह ने अंग्रेज़ी हुकुमत को अपनी नीतियों पर एक बार फिर सोचने के लिए मजबूर कर दिया।