बेगम हज़रत महल के जासूस जिम्मी ग्रीन उर्फ़ मोहम्मद अली ख़ान की दास्तान

आप अजनबी हैं, नही तो ऐसा सवाल नही करते, ये सब झूठी कहानियाँ हैं, ये कहानियाँ भड़काने के लिए फैलाई जाती हैं, नफ़रत तो पहले से भी कम नही, ये बात बिलकुल सही है कि अंग्रेज़ बच्चों और औरतों का ख़ून बहाया गया है लेकिन किसी की आबरु पर हमला नही किया गया, ये हमारी तहज़ीब और रस्म व रिवाज के ख़िलाफ़ है, हिंदुस्तान से लेकर लंदन तक की अख़बारों में जो ये ख़बरें हैं; ये सब बे बुनियाद हैं!

Share this Post on :

एक रोज़ अपने ख़ैमे में लेटा था कि, केक बेचने वाले की आवाज़ सुनाई दी, गोश्त खा खा कर तबियत भर चुका था, इसलिए उसे अपने पास बुला लिया। वो ख़ूबसूरत नौजवान था, उसने सफ़ेद रंग का कपड़ा पहन रखा था, चेहरे पर दाढ़ी मुंछ भरी हुई थी। उसने अपना नाम जिम्मी ग्रीन बताया, और कहा कि उसका बाप दूसरे रेजिमेंट में काम करता है।


These 85 soldiers started the 1857 Revolt


केक बेचने वाले की सबसे ख़ास बात ये थी कि वो अंग्रेज़ी बड़ी अच्छी बोल रहा था, मुझसे अख़बार लेकर पढ़ने लगा, और फ़ौज के बारे में पूछने लगा, इतनी गर्मी में यहाँ कैसे रहेगें (मैं वहाँ नया था ) ? वगैरह वगैरह !

मैंने जब उसकी अंग्रेज़ी के बारे में पूछा तो उसने बताया की उसने रेजिमेंट के स्कूल से पढ़ाई की है; फिर एक अंग्रेज़ के यहाँ काम किया; इसलिए उसकी अंग्रेज़ी अच्छी है।


A Burqa Clad Woman Commander of Indians in 1857


मैंने उससे ढेर सारी बातें की और फिर उसे पैसे देकर रवाना किया। उस रोज़ शाम को एक ख़बर आई कि लखनऊ का एक जासूस पकड़ा गया है, वो कोई और नही; वो जिम्मी ग्रीन था!

मुझे उसे देख कर सख़्त तकलीफ़ हुई, कि इतना समझदार और पढ़ा लिखा आदमी फ़सादी के गिरोह में कैसे है! शाम हो चुकी थी इसलिए उसे फाँसी नही दिया गया उसे क़ैद कर मेरे हवाले कर दिया गया। कुछ अंग्रेज़ फ़ौजी उसे सुअर का गोश्त खिलाना चाहते थे लेकिन मेरे डांट डपट पर वो पीछे हट गए, जिम्मी ग्रीन के चेहरे पर शुक्रिया के आसार थे और वो कहने लगा ख़ुदा तुम्हें इसका बदला देगा !


Moondar : Muslim Friend of Rani Lakshmibai Who Martyred Herself For The Motherland


मैंने इरादा किया कि सारी रात जाग कर बिताऊंगा क्योंकि अगर ये भाग जाए तो मुफ़्त में मेरी बदनामी होनी थी, मैं ये जानता था ये रात इनकी ज़िन्दगी की आख़िरी रात है इसलिए मैनें एक दुकानदार को बुलाकर कहा इन्हें जो चाहिए वो दे देना पैसे मैं दे दूंगा !

मैंने उससे कहा सुनो जिम्मी ग्रीन, तुम भी ये बात जानते हो ये रात तुम्हारे लिए आख़िरी रात है, तुम्हें सुबह को फाँसी दे दिया जाएगा, लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि तुम कौन हो ?

उसने जवाब में कहा कि मैं बेगम हज़रत महल (Begum Hazrat Mahal) की फ़ौज का अफ़सर हूँ, यहाँ खुफ़िया जानकारी हासिल करने आया था , सारी जानकारी हासिल कर भी ली थी लेकिन ख़ुदा की मर्ज़ी के आगे किसका चलता है !


Begum Hazrat Mahal, a prominent woman of 1857 rebellion.


मैंने टोक कर उसका नाम पूछा तो उसने जवाब में कहा :- मैं दो बार लंदन (London) जा चुका हूँ, बरेली का रहने वाला हूँ, बरेली कॉलेज से पढ़ने के बाद मैं रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की। मेरी ज़हानत और कामयाबी से अंग्रेज़ जलते थे, मेरा नाम मोहम्मद अली ख़ान  (Mohammad Ali Khan) है!

कंपनी में मैंने नौकरी भी की लेकिन कंपनी के लोगों का रवैया मेरे प्रति सही नही था इसलिए मैंने मुलाज़मत छोड़ बागियों के साथ हो गया !

और अब हमने इरादा कर लिया है कि कंपनी के राज को उखाड़ फेकेंगें, और हमें इसमें कामयाबी भी हासिल हो गई इसकी गवाही आपका अख़बार देता है!


Peer Ali : Fearless Patriot Who Chose Martyrdom Over Life Of A Traitor in 1857


हाँ हम इस वक़्त मुश्किल में है लेकिन हमारी आने वाली नस्लों को इस कंपनी राज से छुटकारा मिल जाएगा !

मैने उसके साथ आए नौकर के बारें में पूछा तो उसने बताया की ये नाना साहब का आदमी है, तब मैंने उससे पूछा कि ये बात कहाँ तक सही है कि ग़दर के दौरान अंग्रेज़ औरतों की पहले इज़्ज़त लुटी गई फिर उन्हें मारा गया ? इस पर मुहम्मद अली ख़ान (Mohammad Ali Khan) बोला आप अजनबी हैं, नही तो ऐसा सवाल नही करते, ये सब झूठी कहानियाँ हैं, ये कहानियाँ भड़काने के लिए फैलाई जाती हैं, नफ़रत तो पहले से भी कम नही, ये बात बिलकुल सही है कि अंग्रेज़ बच्चों और औरतों का ख़ून बहाया गया है लेकिन किसी की आबरु पर हमला नही किया गया, ये हमारी तहज़ीब और रस्म व रिवाज के ख़िलाफ़ है, हिंदुस्तान से लेकर लंदन तक की अख़बारों में जो ये ख़बरें हैं; ये सब बे बुनियाद हैं!


Waris Ali, the lesser known hero of 1857 in Tirhut (Muzaffarpur)


इस क़िस्म की बातों से हमने रात काटी, मैं कुछ और पूछ रहा था तभी गार्ड आ गया, मुझे भी आगे बटालियन को लेकर निकलना था इसलिए गार्ड के हवाले कर मैं तैयारी करने लगा।

जब हम कानपुर से लखनऊ जाने की सड़कों पर बढ़ रहे थे तो एक पेड़ पर मुझे जिम्मी यानी मुहम्मद अली ख़ान (Mohammad Ali Khan) और उसके नौकर की लाश टंगी हुई मिली, बदन अकड़ चुका था और मेरे बदन पर कंपकपी तारी था।


Share this Post on :