जब सोहैल अज़ीमाबादी के क़लम की ताक़त से बंद हुआ कलकत्ता का ‘हमदर्द’ अख़बार


Share this Post on :

 

द्वारका हाई स्कूल, मुज़फ़्फ़रपुर में सोहैल अज़ीमाबादी ने 9वीं में दख़ला करवाया गया, वहीं से 1930 में उन्होंने मैट्रिक का एग्ज़ाम दिया, पर मैथ में कमज़ोर होने की वजह कर फ़ेल हो गए. उस ज़माने में ये आम कहावत थी के जो बच्चे पटना यूनिवर्सिटी से एग्ज़ाम पास नहीं कर पाते थे, वो कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पास कर जाते हैं, इसलिए 1931 में सोहैल अज़ीमाबादी कलकत्ता भेज दिये गए. पर मैथ ने उनका रास्ता पहाड़ बन कर रोका, और वो आगे अपनी पढ़ाई जारी न रख सके, इसलिए मुलाज़मत करने को ठाना.

उर्दू और फ़ारसी पर अच्छी पकड़ थी, इसलिए 1932 में “हमदर्द” नाम के एक अख़बार के लिए काम करना शुरू किया, कभी इसी नाम का अख़बार दिल्ली से महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मुहम्मद अली जौहर निकाला करते थे, मगर 1930 तक वो बंद हो चुका था. इस अख़बार ‘हमदर्द’ के इडिटर मौलाना शफ़ाअतउल्लाह ख़ान थे, जो पंजाब के रहने वाले थे. कांग्रेसी आदमी थे, हुकूमत के ख़िलाफ़ खुल कर लिखा करते थे, इस वजह कर जेल आना जना लगा रहता था.

अख़बार भी कांग्रेसी था, इडिटर की हैसियत से मौलाना शफ़ाअतउल्लाह ख़ान अपने अख़बार में काम करने वाले लोगों को रोज़ दर्स दिया करते थे के जब भी अख़बार में लिखने बैठो, तो ये मत सोचो के इसका असर क्या होगा, अंग्रेज़ी सरकार से हमारी लड़ाई है, उस पर हर तरफ़ से हमला करना है, और उसे कमज़ोर करना है, ताके हमारा मुल्क हिंदुस्तान आज़ाद हो सके.

सोहैल अज़ीमाबादी ने जब अख़बार में काम करना शुरू किया तो वहां उनके चंद हम ख़्याल नौजवान और मिल गए. ज़ुबान पर अच्छी पकड़ थी, इस वजह कर काफ़ी मज़मून लिखे, काफ़ी छपने लगे थे. इसलिए कलकत्ता में आदीबों के साथ उठना बैठना भी शुरू हो गया, रज़ा अली वहशत, अब्दुर रज़्ज़ाक़ इलाहाबादी, अब्दुल सत्तार सिद्दीक़ी, जमील मज़हरी, पंडित कैफ़ी, सुदर्शन जैसे लोगों से अच्छे ताल्लुक़ात हो गए.

मौलाना शफ़ाअतउल्लाह ख़ान अपने अख़बार ‘हमदर्द’ में काफ़ी सख़्त लिखा करते थे, पर अपने तजुर्बे की वजह कर क़ानून की पकड़ में नहीं आते थे. वो 1936 की बात है, एक दिन मौलाना बीमार पड़ गए, और उन्होंने एडिटोरियल लिखने सोहैल अज़ीमाबादी को कहा. उन दिनों सरहदी गाँधी, ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान के बेटे वली ख़ान मुल्तान जेल में क़ैद थे, और भूख हड़ताल पर थे. उन्ही के समर्थन में जवानी के जोश से भरे 25 साल के सोहैल अज़ीमाबादी ने “हमदर्द” अख़बार के लिए एडिटोरियल लिख डाला, और वो छप भी गया. दूसरे दिन मौलाना शफ़ाअतउल्लाह ख़ान ने जब एडिटोरियल पढ़ा तो उनके हाथ से चाय की प्याली गिर गई, असल में सोहैल अज़ीमाबादी ने मौलाना के हिदायत के मुताबिक़ सरकार की कोई परवाह नहीं की और लिख डाला, इस तरह तीर कमान से निकल चुका था.

अगले रोज़ जब सोहैल अज़ीमाबादी दफ़्तर पहुंचे तो मौलाना शफ़ाअतउल्लाह ख़ान ने उन्हें अपने पास बुलाया, और बोला : “अज़ीज़म अख़बार का तो तुमने क़त्ल कर दिया, लेख बहुत सख़्त था, सरकार इसे कभी माफ़ नहीं करेगी, अख़बार की ज़मानत मांगी जाएगी, और रूपये तो हैं नहीं, इसलिए अख़बार बंद समझो”. दो दिन गुज़रे थे के सरकार ने अख़बार से पांच हज़ार की ज़मानत मांग ली, पैसे थे नहीं, तो ज़मानत भी अदा न हो सका और अख़बार बंद हो गया.

इसके बाद सोहैल अज़ीमाबादी कलकत्ते से पटना वापस आ गए. इसके बाद वो सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए. इस दौर में कांग्रेस ने आंदोलन छोड़ रखा था, सोहैल अज़ीमाबादी ने उसमे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, गाँधी का नामक सत्याग्रह, साइमन वापस जाओ और भगत सिंह की शहादत ने उन्हें काफ़ी मुतासिर किया, इसी दौर में वो तरक़्क़ी पसंद तहरीक के नज़दीक आये. सोहैल अज़ीमाबादी गांधीवादी थे, घर वालों की ख्वाहिश थी के पढ़ कर सरकारी नौकरी करें, लेकिन उनके दिल में बिदेसी सरकार के लिए नफ़रत थी, वो हिंदुस्तान को आज़ाद देखना चाहते थे, इसलिए कभी सरकारी नौकरी का ख्याल दिल में न लाया, मुल्क की आज़ादी की जद्दोजहद में लगे रहे और एक बार क़ैद भी हुवे.

सोहैल अज़ीमाबादी का असल नाम सय्यद मुजीबउर रहमान था, शायरी का शौक़ था, इसलिए ‘सोहैल’ तख़ल्लुस बना, पटना शहर में जुलाई 1911 को पैदा हुवे, इसलिए अज़ीमाबादी भी हो गए. आबाइ वतन शाहपुर भदौल था, जो उस समय पटना ज़िला का हिस्सा था.


Share this Post on :
Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.