जब गुरूदक्षिणा के रूप में शाह मुश्ताक़ को श्रीबाबू ने बनाया विधायक
शाह मुश्ताक़ साहब सरकारी नौकरी करते थे, तब एक दिन श्रीबाबू ने उन्हें अपने दफ़्तर पर बुलाया और कहा के आज मै जिस कुर्सी पर बैठा हूँ; अगर आपके पिता शाह मुहम्मद ज़ुबैर साहब ज़िंदा होते तो वो इस इस कुर्सी पर बैठते; वो कुर्सी मुख्यमंत्री की कुर्सी थी। इसके बाद उन्होंने मुश्ताक़ साहब से कहा के वो अपने वालिद की सियासी विरासत को सम्भालें; और श्रीबाबू ने उन्हें अपने इलाक़े से शेख़पुरा-सिकंदरा से टिकट दिया।
एक सभा को संबोधित करते हुवे श्रीबाबू ने यहाँ तक कह दिया के ये शाह मुश्ताक़ नही; बल्कि श्रीकृष्णा सिंह के गुरु का बेटा है, और ये गुरु-दक्षिणा देने का समय है। और इस तरह 1952 में शाह मुश्ताक़ साहब चुनाव जीत कर विधायक बने और विधानसभा पहुँचे। 1962 में सिकंदरा अलग विधानसभा बना, तब शाह मुश्ताक़ साहब वहाँ से भी चुनाव जीते।
हुआ कुछ यूँ, के वो 1920 का दौर था, ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक अपने उरुज पर थी, इसी तहरीक के दौरान शाह मुहम्मद ज़ुबैर साहब को मुंगेर की एक मस्जिद में तक़रीर करने के लिए बुलाया गया, मस्जिद में काफ़ी तादाद में लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे; तब ही शाह मोहम्मद ज़ुबैर एक नौजवान श्रीकृष्ण सिंह का हाथ पकड़े हुए मस्जिद में दाख़िल होते हैं, और उन्हे (श्रीकृष्ण सिंह) को तक़रीर करने कहते हैं, श्रीकृष्ण सिंह ने मस्जिद से हिन्दु मुस्लिम एकता, ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक के समर्थन में एक इंक़लाबी तक़रीर की; जिसकी गूंज काफ़ी दूर तक सुनाई दी, हिन्दु मुस्लिम हर जगह मज़बूती के साथ एक जगह नज़र आने लगे।
और यहीं से शुरु होता है श्रीकृष्ण सिंह का सियासी सफ़र जो उन्हे बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाता है। श्रीकृष्ण सिंह ख़ुद को शाह मोहम्मद ज़ुबैर का शागिर्द मानते थे। शहर मुंगेर के ज़ुबैर हाऊस मे ही “श्रीकृष्ण सिंह” ने सियासत सीखा, यहीं उनकी मुलाक़ात हिन्दुस्तान के बड़े से बड़े नताओं से हुई चाहे वो गांधी हों या मोती लाल या मौलाना जौहर…।
शाह मुहम्मद ज़ुबैर ने बिहार में पहली बार 1923 में किसान सभा नामक संगठन की बुनियाद डाली थी, वो इसके अध्यक्ष थे, और उनके साथ श्रीबाबू उपाध्यक्ष। ये बड़ी मशहूर जोड़ी रही; और 1930 में शाह मुहम्मद ज़ुबैर का इंतक़ाल पचास साल की उम्र के अंदर हो गया; क्यूँकि जेल में उन्हें ज़हर दे दिया गया था, और जेल से निकलने के बाद वो वापस अपने सेहत को सम्भाल नही सके।
जिस समय शाह मुहम्मद ज़ुबैर साहब का इंतक़ाल हुआ; उस समय उनके छोटे भाई शाह मुहम्मद उमैर साहब भी भारत की आज़ादी की ख़ातिर जेल में थे; और उन्हें उनके भाई के मौत की ख़बर राजेंद्र प्रसाद ने दी। 1934 में बिहार में भीषण भूकंप आया था, जिसका सबसे बड़ा असर ये हुआ के नदी ने अपना रुख़ बदल लिया। ठीक यही सोन नदी के साथ हुआ, अरवल भी बाढ़ के चपेट में आ गया।
अधिकतर आबादी विस्थापित हो गई, शाह मुहम्मद उमैर ने अपनी निजी ज़मीन पर पुरा शहर बसाया, और उसका उद्घाटन करने श्रीबाबू ख़ुद 1936 में अरवल आए, और उस जगह का नाम न्यू अरवल-उमैराबाद रखा गया। श्रीबाबू के कहने पर ही वहाँ पर एक बाज़ार का नाम ज़ुबैर मार्केट रखा गया, जहाँ अभी हाल तक हाट लगा करता था।
1884 में शाह मुहम्मद ज़ुबैर का जन्म अरवल में हुआ था, टी.के.घोष स्कुल पटना से शुरुआती पढ़ाई करने इंग्लैंड 1908 में गए, वहाँ से बैरिस्ट्री की पढ़ाई मुकम्मल कर 1911 में पटना तशरीफ़ लाए, उसी समय टी.के.घोष स्कुल पटना और इंगलैंड से बैरिस्ट्री की पढ़ाई मुकम्मल कर लौटे लोगों ने बंगाल से बिहार को अलग करने की तहरीक छेड़ रखी थी, जिसमें कुछ नाम है, अली ईमाम, सच्चिदानन्द सिन्हा, मौलाना मज़हरुल हक़, हसन ईमाम। शाह मोहम्मद ज़ुबैर ने भी इस तहरीक को अपना पूरा समर्थन दिया, इसके बाद वो पटना में ही वकालत की प्रैकटिस करने लगे, वो अरवल में ही रहते थे और नाव के सहारे नहर के रास्ते अरवल से खगौल आते और फिर टमटम से पटना, ये उनका रोज़ का मामूल था.
1912 में बाकीपुर पटना में हुए कांग्रेस के सालाना इजलास में चीफ़ आर्गानाईज़रों में से थे, इस इजलास में कांग्रेस के पिछले किसी भी इजलास के मुक़ाबले बड़ी तादाद में मुसलमान शरीक हुए थे और इसका सेहरा सच्चिदानन्द सिन्हा, मौलाना मज़हरुल हक़, हसन ईमाम और शाह मोहम्मद ज़ुबैर वग़ैरा के सर बंधता है। फिर 1914 में मुंगेर की रहने वाली बीबी सदीक़ा से शादी हो गई जिसके बाद शाह मोहम्मद ज़ुबैर मुंगेर चले गए और वहीं प्रैकटिस शुरु की और साथी ही सियासत में खुल कर हिस्सा लेने लगे, इसी दौरान मुंगेर ज़िला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष चुने गए और श्रीकृष्ण सिंह उपाध्यक्ष। और ये तालुक़ात लगातार क़ायम रहा।
आज कटिहार के पुर्व सांसद शाह तारिक़ अनवर इसी सियासी घराने से ताल्लुक़ रखते हैं, उनके पिता का नाम शाह मुश्ताक़ अहमद है, और दादा का नाम शाह मुहम्मद ज़ुबैर है। ये लोग सोन के किनारे बसे एक छोटे से क़स्बे अरवल से ताल्लुक़ रखते हैं। आज अरवल एक ज़िला है।