पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल के पुराने ढांचे का बचा रहना क्युं ज़रूरी है ?? #SaveAnjumanIslamiaHall
आज मै आपको पटना शहर की एक एैसी इमारत के बारे में बताने जा रहा हुं, जिसने बिहार निर्माण में नुमाया किरदार अदा किया, जिसने भारत को आज़ाद कराने में अहम भुमिका अदा की, जिसने उर्दु को बिहार की राजकीय भाषा में अहम रोल अदा किया, ये वो ईमारत है जिसकी गोद में बिहार की पहली हुकुमत बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस की क़यादत में मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी के बैनर तले 1 अप्रैल 1937 को बनाती है! जी हां, मै बात कर रहा हुं पटना शहर के सबसे पुराने और सबसे ऊंचे ऑडिटोरयम अंजुमन इस्लामिया हॉल की, जहां बाबु जगजीवन राम ने अपनी पहली सियासी तक़रीर की, इसी इमारत ने जेपी नारायण की तहरीक को संपुर्णाक्रांति का रूप दिया। और इसी इमारत ने बिहार मे बनने वाली हर हुकुमत का स्वागत किया!
पटने के अशोक राजपथ पर तक़रीबन 135 साल की एक अज़ीम तारीख़ को अपने सीने से लपेटे इस इमारत ने तीन सदी देखा है, इसने 19वीं सदी देखा, 20वीं सदी देखा और आज भी बड़े फ़ख़्र के साथ 21वीं सदी देख रही है, अगर इसे सही से बचा कर रखा गया तो ये आने वाली कई सदियां देखेगी ?
पटना के मुसलमानो ने 1885 में अंजुमन इस्लामिया नाम के इस इमारत की संग ए बुनियाद रखी; ये पटना में बनने वाला पहला हॉल यानी ऑडीटोर्यम था। यहां पर एक क़ाबिल ए ग़ौर है के बिहार राज्य अब तक अपने वजूद में नही आया था, और ना ही पटना उसकी राजधानी थी।
अगर लफ़्ज़ “अंजुमन इस्लामिया” पर नज़र डालें तो ये भारत में रह कर पढ़े अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी की तहरीक से प्रेरित नज़र आती है, जिन्होने 1860 के दौर में बहुत ही मज़बूती से “पैन इस्लामिक मूवमेंट” चलाया था; और 1885 के बाद तुर्की के सुल्तान अब्दुल हमीद II की सरप्रस्ती में इसे और बढ़ाया। बाद में इस तहरीक का छोटा सा नमुना हिन्दुस्तान में “रेशमी रुमाल तहरीक” और “ख़िलाफ़त तहरीक” के रूप में देखने को मिला। 1885 के बाद हिन्दुस्तान में कई “अंजुमन इस्लामिया” नामक संगठन अलग अलग रूप में अलग अलग जगह बने! बम्बई, कलकत्ता, रांची आदी जगह में ये संगठन आज भी मौजूद है, जो छोटे छोटे समाजिक कार्य में कार्यरत हैं!
इसी दौरान इंगलैंड में रह कर पढ़ाई कर रहे बिहार के छात्रों ने वहां एक संगठन बनाया; और उसका नाम “अंजुमन इस्लामिया” रखा! इस संगठन से जुड़े कई बड़े नाम हैं, जिसमें पहला नाम मौलाना मज़हरुल हक़ का आता है, वहां इस संगठन संस्थापक वही थे। इसके इलावा भारतीय संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंन्द सिन्हा, 1908 में अमृतसर मे हुए मुस्लिम लीग के सालाना अधिवेशन की अध्यक्षता और 1920 में लीग ऑफ़ नेशन की पहली असेंबली में भारत की नुमाईंदगी करने वाले सैयद अली इमाम और 1918 में बंबई में हुए कांग्रेस के स्पेशल अधिवेशन की अध्यक्षता और 1923 में लीग ऑफ़ नेशन की चौथी असेंबली में भारत की नुमाईंदगी करने वाले सैयद हसन इमाम जैसे लोग इस संगठन से जुड़े थे। आपको बताते चलें के इस संगठन के प्रोग्राम में मुहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी जैसे लोग शरीक होते थे, जिनमे से पाकिस्तान के क़ायद ए आज़म हैं तो दूसरे भारत का राष्ट्रपिता। ये तमाम लोग उस दौरना इंगलैंड मे रह कर बैरिस्ट्री की पढ़ाई कर रहे थे। इस बात का ज़िक्र ख़ुद डॉ सच्चिदानंन्द सिन्हा अपनी किताब में करते हैं।
“अंजुमन इस्लामिया” संगठन से जुड़े लोग पढ़ाई मुकम्मल कर वापस बिहारौट कर आये तो बिहार को बंगाल से अलग करने के लिए “Bihar for Bihari” तहरीक चलाई और काफ़ी साल मेहनत करने के बाद आख़िर 22 मार्च 1912 को बिहार राज्य वजूद में आया। अलग बिहार की मांग को ले कर कई प्रोग्राम अंजुमन इस्लामिया हॉल मे हुआ।
बिहार को वजूद में लाने के बाद अब ज़रूरत थी हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने की , तहरीक ए आज़ादी की गवाह इस इमारत ने हर उस आवाज़ को स्टेज मुहैय्या कराया जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए आवाज़ बुलंद की !
इस इमारत की दिवारों ने महात्मा गांधी की आवाज़ सुनी, मौलाना मुहम्मद अली जौहर की आवाज़ सुनी, शौकत अली की आवाज़ सुनी, उनकी वालिदा बी-अम्मा की आवाज़ सुनी! आज भी इस इमारत में पंडित नेहरु, ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान, सुभाष चंद्रा बोस, डॉ राजेंद्र प्रासाद और मौलाना आज़ाद जैसे लोगों की अवाज़ को महसूस किया जा सकता है।
27-28 दिसम्बर 1912 को बांकी पूर में आर.एन मधुकर की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के 28वें अधिवेशन की गवाह इस इमारत ने 26-29 दिसम्बर 1938 को बांकी पूर में मुहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता में हुए मुस्लिम लीग के 26वें अधिवेशन को भी बहुत नज़दीक से देखा है! इसी इमारत में आज़ादी से पहले बनी सोशलिस्ट पार्टी की पहली मिटिंग हुई थी!
इसी इमारत के साये में मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब की अध्यक्षता में “मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी” वजूद में आई, और इसी पार्टी के बैनर तले 1 अप्रैल 1937 को बैरिस्टर मुहम्मद यूनुस ने बिहार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली!
ये इमारत उर्दु तहरीक की गवाह है, इसी इमारत से “बाबा ए उर्दु” मौलवी अब्दुल हक़ ने उर्दु के हक़ की लड़ाई की, जिसके गवाह मौलाना शफ़ी दाऊदी से लेकर मौलाना मग़फ़ुर अहमद ऐजाज़ी जैसे जैय्यद लोग हैं, और इन्ही की दूरअंदेशी की वजह कर उर्दु बिहार की राजकीय भाषा बनी; जिसके लिए ग़ुलाम सरवर, शाह मुशताक़ और तक़ी रहीम जैसे लोगों ने काफ़ी मेहनत की, इस इमारत में उसके लिए कई प्रोग्राम किया!
आज़ाद भारत के पहले श्रममंत्री और मोरारजी देसाई सरकार में उप प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री रहे बाबु जगजीवन राम ने अपने जीवन की पहली सियासी तक़रीर इसी इमारत में की थी। और बाद में सियासत की बुलंदियों को छुआ।
आज़ादी के बाद इसी इमारत ने लोकनायक जय प्रकाश की आवाज़ को देश की आवाज़ बनाई, और जेपी की तहरीक को संपुर्ण क्रांति का रूप दिया, इसी इमारत मे तक़रीर कर लालु यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो नितीश कुमार भारत के रेलमंत्री!
इस इमारत ने ना सिर्फ़ मज़हबी और सियासी मुद्दों को जगह दी बल्के मज़हब और सियासत को एक सांचे में ढाल दिया। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण रमज़ान के मौक़े पर होने वाली सियासी अफ़्तार पार्टी है, कौन सी एैसी सियासी पार्टी है जो रमज़ान के मौक़े पर यहां अफ़्तार की दावत नही देती हो! ये एक रेवाज बन गया है अंजुमन इस्लामिया हॉल में अफ़्तार पार्टी कराने का! और इसमे भाजपा जैसी पार्टी भी बराबर शरीक हैं!
हज़ारो शादीयों का गवाह ये इमारत आज अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड रही है, ख़बरों की माने तों अंजुमन इस्लामिया हॉल को अब शहीद कर कॉमर्शयल कॉम्पलेक्स बनाने की पहल हो रही है, जिसके लिए सरकारी टेंडर भी निकल चुका है।
अंजुमन इस्लामिया हॉल के इतिहास को अगर नज़र में रख कर सोंचा जाये तो वक़्त का तक़ाज़ा ये है के इस इमारत को शहीद और ज़मींदोज़ करने की जगह मरम्मत करवाई जाये! पिछले 100 साल रह रह कर मरम्मत होने वाली ये इमारत दो बार बहुत बेहतरीन तरीक़े रिनोवेट हो चुकी है, पहली बार सैयद अब्दुल अज़ीज़ और सर सुल्तान अहमद की पहल पर 1934 में और दूसरी बार 1997 में लालु यादव की सरकार में!
अब ज़रूरत है, लाखो लोगों की याद को अपने सीने से समेट रखी इस इमारत को बचाने की; वर्ना तरक़्क़ी के नाम अंजुमन इस्लामिया हॉल को उसी तरह तोड़ दिया जाएगा जिस तरह से पहली बार बिहार आये महात्मा गांधी की मेज़बानी करने वाले “सिकंदर मज़िल” को सरकारी देख रेख के अभाव में तोड़ दिया गया।
Anjuman Islamia Hall, endowed with a towering ceiling and, perhaps, the first public hall of Patna, had hosted several well-known personalities and witnessed many important meetings since its inception in 1885. Therefore its important to save our heritage.