भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब मारे गए कैनेडियन नागरिक


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14 अगस्त 1942 को पटना शहर पर पुरी तरह से ब्रिटिश और अमेरिकन फौजियों का कब्ज़ा हो गया. आंदोलन कर रहे विद्यार्थियों ने शहर खाली कर दिया था. स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और उसके हॉस्टल फौजियों के अड्डे बन चुके थे. शहर मे अजीब सी खामोशी थी. न जलूस था, न ही नारे. हर तरफ अंग्रेजों का जुल्म था. एक तरफ लोगों की बड़ी तादाद में गिरफ्तार किया गया. वहीं दूसरी तरफ सड़क साफ करने के लिए बड़ी संख्या मे प्रोफेसर, डॉक्टर और वकीलों धक्के मार कर सड़क पर लाया गया और उनसे जबर्दस्ती सड़क साफ़ करवाया गया. अंग्रेजो ने पटना की कड़ी नाकेबंदी कर रखी थी. पर पटना का देहाती इलाका लोगों के हौसले की वजह कर पुरी तरह आज़ाद था.

प्रदर्शन की भावना को जिस क्रुरता से दबाने की सरकारी कोशिश हुई, उसका अमिट प्रभाव जनता पर पड़ा. वह कठोर हो गई. अपने शहीदों की याद ने उसे उकसाया और पहले जैसी शांति नही रही. सबकी ज़ुबान एक बात थी : ‘आज़ाद होंगे या मरेंगे.’

14 अगस्त को ही मृत्यु की परवाह किये बग़ैर जनता अब सड़क पर थी. हरनौत रेलवे स्टेशन को जला दिया गया. सारा गल्ला लूट लिया गया. चेरो स्टेशन को सामान सहीत जला दिया गया. बाढ़ में रेलवे पटरी उखाड़ दी गई. स्टेशन की फर्नीचर और कागजात जला दिये गये. अथमलगोला और मोर स्टेशन को जला दिया गया. गुलजारबाग स्टेशन भी आग की चपेट में आया. पुनपुन नदी पर बने रेलवे पुल को तोड़ने की नाकाम कोशिश की गई. हिलसा में रेल लाईन उखाड़ दिये गये. करायपरसुराय रेलवे स्टेशन की चीज़ें नष्ट की गईं. पीरो के पास के रेलवे स्टेशन जला दिये गये. बिहियां स्टेशन के कागजात जला दिये गये और कारीसाथ और बिहियां तक की रेलवे लाईन काट दी गई. बिहियां से रघुनाथपुर तक की रेलवे लाइन कई जगह छिन्न भिन्न कर दिया गया. आरा से कोइलवर तक रेलवे लाइन जगह जगह उखाड़ दी गई. कोइलवर स्टेशन पर रेलवे लाइन उखाड़ते हुए कपिलदेव राम अंग्रेज़ी गोली का शिकार बने. बक्सर थाने के वरुणा और चौसा आदि स्टेशन के कागजात जला दिये गये. रघुनाथपुर स्टेशन को काफ़ी नुकसान पहुंचाया गया. 14 अगस्त को ही एक बड़ी भीड़ द्वारा सासाराम स्टेशन को जली दिया गया. डिहरी रेलवे स्टेशन की बहुत सी चीजें आंदोलनकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया. पलेजा के पास की रेलवे लाईन हजारो लोगौ द्वारा मिलकर उखाड़ दिया गया. खाराडीह सिटेशन बरबार कर दिया गया. कुरदा स्टेशन जला दिये गये. आंदोलनकारियों ने रेलवे लाइन उखाड़ना शुरु किया. पुलिस आ गई, और गोली चला दी. शकरी गांव के रमजन्म राय मौके पर ही शहीद हो गये.

14 अगस्त 1942 को फ़तुहा स्टेशन का गोदाम लूट लिया गया और रेल की पटरियां उखाड़ दी गई. इस बीच एक ट्रेन 19 ऊ.पी. ऐक्सप्रेस फ़तुहा स्टेशन पर खड़ी थी, जो पटना जाना चाहती थी. इस पर रॉयल ऐयर फ़ोर्स के दो कैनेडियन अफ़सर सवार थे. उनमें से एक ने रिवाल्वर में कंकर की गोली भर कर पटरी उखाड़ने वाले आंदोलनकारियों को दे मारा. भीड़ उत्तेजित हो गई. लोगों ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा लगाना शुरु कर दिया. परिस्थिति बिगड़ती देख गार्ड ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. पर आगे तो लाईन थी ही नही. मजबूरन गाड़ी को वापस पीछे लौटना पड़ा. जैसे ही गाड़ी स्टेशन पर पहुंची लोग कैनेडिऩयनों पर टूट पड़े और उन्हे पीट पीट कर मार डाला. पुरे शा़हर में उनके लाश का प्रदर्शन किया और अंत में पुनपुन नदी में उनकी लाश को बहा दिया. और इसके बाद खुसरुपुर, दनियावां और सिगरियावां स्टेशन जला दिया गया. कैनेडियन अफ़सर के क़त्ल के जुर्म में मारण दुसाध, पेरे दुसाध, मुदी मियां को गिरफ्तार किया गया. और उन्हे निचली अदालत द्वारा मौत की सज़ा सुनाई गई, बाद में 27 अप्रैल 1943 को पटना हाई कोर्ट ने उनकी सज़ा को बरक़रा रखा. और इन लोगों को फांसी पर लटका दिया गया. भारत छोड़ो आंदोलन के समय कुछ ही लोगो को फांसी दी गई थी; उन्ही फांसी में एक फांसी इन लोगो की थी. वर्ना अधिकतर लोग पुलिस की गोली का ही शिकार हुए थे.

समस्तीपुर में 14 अगस्त को ही अंग्रेज़ों के तमाम अड्डोंं पर आंदोलनकारियों ने अपने झंडे फहरा दिये थे. हर तरफ़ हड़ताल का माहौल था. 15 अगस्त 1942 को एक बरौनी की ओर से गोरों की एक स्पेशल ट्रेन समस्तीपुर जंक्शन पर आ कर रुकती है. लोगों ने स्टेशन पर उस ट्रेन के डब्बे को घेर लिया और ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा लगाने लगे. गाड़ी पर सवार गोरे शांत रहे. पर स्टेशन पर मौजूद गोरों ने उन्हे अपनी भाषा में भड़काना शुरु किया. उनकी ट्रेन अभी स्टेशन पर ही खड़ी थी के कुछ गोरे आगे बढ़ कर रेलवे गुमटी पर आ गए. दोनो ओर फाटक बंद था. फाटक हो कर जाने वाला रास्ता बहुत चालु था; इस कारण गुमटी के दोनो ओर लोगो की काफी़ भीड़ इकट्ठी हो गई. रास्ते पर खड़ी भीड़ ने भी गोरों को देख नारा लगाना शुरु कर दिया. गोरे उन्हे खदेड़ने के लिए कोड़े तक का उपयोग करते. फिर भी मामला बहुत तनावपुर्ण नही था. इसी बीच स्टेशन पर से वह स्पेशल खुल कर गुमटी पर पहुंची. गाड़ी का फाटक खोल दिया गया. गुमटी पर खड़े गोरे उस पर चढ़ गए. भीड़ और ज़ोर ज़ोर से नारा लगाने लगी. इसी बीच किसी ने ट्रेन पर पत्थर दे मारा. देखते ही देखते पत्थर की बारिश हो गई. ट्रेन फौरन चलने लगी और गोरों के कमांडर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया. देखते ही देखते गुमटी के दोनो ओर खड़े आम लोगों पर दौड़ती हुई ट्रेन से गोली दागी जाने लगी. गोली बारी ने अपना परिणाम दिखा दिया; जहां ग्यारह बरस के अब्दुल शकूर शहीद हुए, वहीं रामलखन सिंह गोली का शिकार हुए. कई लोगों के लाश मकई और राहर के खेतों में मिले. इस गोलीबारी में 21 से अधिक लोगों की मौत हुई और सौंकड़ो ज़ख्मी हुए. ट्रेन के ड्राईवर ने अगर गाड़ी की रफ़्तार तेज नही की होती तो और भी कई अंग्रेज़ी गोली का शिकार हो जाते; क्युंके अंग्रेज लगातार ट्रेन से गोलीबारी किये जा रहे थे.

इस गोलीकांड ने पुरे शहर को गर्म कर दिया. क्युंके इस कांड में ना सिर्फ़ आंदोलनकारियों को गोली लगी थी, बल्के आम जनता बड़ी संख्या में हताहत हुई, जिसमें बच्चे थे, बुढ़े थे, महिलायें थी. यहां तक कि इस गोलीकांड में एक गाय की भी मौत हुई थी. शहर में मानो कोहराम सा मच गया था. शाम में शहीदों का एक शानदार जुलूस निकाला गया. जुलूस शहर के चारो ओर से आई, क्युंके गोली कांड में मरने वाले पुरे शहर के लोग थे. जुलूस में गाय की भी लाश थी. लोकनाथपुर के बसुदेव झा, पुनास के पूना महतो, रानीपुर के नौबतलाल झा, जितवारपुर के बदन राम, दुधपुरा के बच्चन भड़िहर और शिवनंदन पाल, दौलतपुर के सरयन देव प्रसाद, पखरौरा के मीर अब्दुल्ला, रानीटोला के सूबालाल झा, भमरुपुर के घूरन चौधरी, किसनपुर के बैजनाथ राउत, मूसापुर के शिवशंकर लाल, महिसारी के रामदेव झा और काशीपुर के रामसेवक राउत जैसे लोग थे; जो इस अंद्धाधुंद गोली बारी का शिकार हुए. इनके अंतिम संस्कार से पहले शहर के मिडिल स्कुल मैदान में एक विराट सभा हुई. जिसमें ‘सर्चलाईट’ अख़बार के इडिटर मुरली मनोहर प्रसाद का भाषण हुआ. इसके बाद शहर में तोड़ फोड़ का एक अलग ही दौर चला. और देखते ही देखते इसने आस पास के पुरे इलाके को अपने चपेट में लिया. चारो ओर के लोग सरकार के खिलाफ उठ खड़े हुए.


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.