जब सुभाष चंद्रा बोस ने मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी का पैर छू कर लिया आशीर्वाद
प्रथम विश्व युद्ध में दौरान 1 दिसम्बर 1915 को राजा महेन्द्र प्रताप की अध्यक्षता में प्रवासी भारतीय सरकार की स्थापना काबुल में की जाती है। जहां राजा महेन्द्र प्रताप राष्ट्रापति, मौलवी बरकतुल्लाह भोपाली प्रधानमंत्री बनते हैं, वहीं मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी उस सरकार मे गृह मंत्री बनाए जाते हैं। ये सरकार अधिक दिनो तक नही चली और विश्व युद्ध ख़त्म होते होते इससे जुड़े लोग दुनिया के अलग अलग हिस्से में फैल जाते हैं।
भारत की आज़ादी की ख़ातिर दुनिया के अलग हिस्सों में भारतीयों को गोलबंद करते हुवे 1927 में मौलवी बरकतुल्लाह भोपाली इंतक़ाल अमेरिका में हो जाता है। वहीं राजा महेन्द्र प्रताप राष्ट्रापति 32 साल जिलावतन रहने के बाद 1946 में वापस भारत के साहिल पर मद्रास में क़दम रखते हैं।
इधर 1938 में मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी हिंदुस्तान की आज़ादी की ख़ातिर 25 साल दुनिया के अलग अलग हिस्सों में जिला-वतन रहने के बाद हेजाज़ से वापस हिंदुस्तान आते हैं, उनका जहाज़ कराची की साहिल पर रुकता है।

जिसके कुछ दिनो बाद डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी को दिल्ली बुला कर जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस्लामिक शोबे का हेड बना दिया। वो दिल्ली के ओखला इलाक़े में रहने लगे।
वहीं इसी दौरान 1939 में उन्हें जमियत उल्मा के बंगाल प्रांतीय सम्मेलन के लिए कलकत्ता शाह मुहम्मद उस्मानी द्वारा बुलाया जाता है। शाह मुहम्मद उस्मानी ने लिखा कि जब इस बात की ख़बर सुभाष बाबू को हुआ तो उन्होंने अपने समर्थक अख़बारों को ये हिदायत दिया के जमियत उल्मा और मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी की ख़बरें दिल खोल कर छापें। और ऐसा ही हुआ। ख़बरें ख़ूब छपीं और बड़ी संख्या में हर जाती और धर्म के लोग मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी से मिलने पहुँचे।
Maulana Ubaidullah Sindhi (seated) and fellow Ghadarite and revolutionary Teja Singh Azad, in an undated photograph, presumed to be from 1922. #AmritMahotsav #AzadiKaAmritMahotsav #AzadHindFauj pic.twitter.com/XemAk3tpxb
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) January 21, 2022
एक दिन ख़ुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस मुलाक़ात की ग़र्ज़ से मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी से मिलने पहुँचे। शाह मुहम्मद उस्मानी ने लिखा है के ये बात जैसे ही उन्हें पता चली वो फ़ौरन बाहर आए और सुभाष बाबू से धीरे से कहा, आज कल मौलाना साहब फ़ौरन नाराज़ हो जाते हैं, इसलिए उनसे किसी बात पर बहस या उनकी मुख़ालफ़त मत कीजिएगा। इस पर सुभाष बाबू ने जवाब दिया के मौलाना ने इतनी तकलीफ़ें उठाई हैं के आदमी का दिमाग़ ख़राब हो जाए, इनमें तो ग़ुस्सा ही पैदा हुआ है। मै तो बस उनसे मिलने और आशीर्वाद लेने आया हूँ, इसके बाद वो अंदर दाख़िल होते हैं। और मौलाना के पास पहुँचते हैं, दोनो हाथ जोड़ कर उन्हें अपना सलाम अर्ज़ करते हैं, और फिर झुक कर मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी का पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं। हार पहनाते हैं और फलों का एक टोकरा तोहफ़े में देते हैं। इसके बाद बैठ कर दोनो बात चीत शुरू करते हैं।

मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी ने सुभाष चंद्रा बोस से पूछा के आज कल क्या कर रहे हैं, जिसके बाद उन्होंने बताया के फ़ॉर्वर्ड ब्लॉक नाम की एक पार्टी बना रहे हैं। दोनो में काफ़ी देर बात चीत हुई, फिर सुभाष बाबू चले गए। और एक दिन मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी को अपने घर पर बुलाया और उनकी शानदार दावत की।
ये मुलाक़ात इस लिए अहम है क्यूँकि मौलाना ऊबैदुल्लाह सिंधी 1915 की आरज़ी हुकूमत ए हिंद में गृहमंत्री थे, और उन्ही के क़दम पर चल कर नेताजी बोस ने आज़ाद हिंद हुकूमत क़ायम की। नेताजी सुभाष चंद्रा बोस का ये सफ़र जनवरी 1941 को द ग्रेट स्केप से शुरू होता है, जहां वो कलकत्ता से अंग्रेज़ों को चकमा दे कर फ़ॉर्वर्ड ब्लॉक के सदस्यों की मदद से पेशावर होते हुवे काबुल और फिर जर्मनी पहुँचते हैं। यहाँ से जापान जाते हैं वो आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान सम्भालते हैं। फिर क्या हुआ वो सारी दुनिया जानती हैं।