जब 80 साल के बाद, पहली बार लाल क़िले में पढ़ी गई नमाज़..॥
दिल्ली से निकलने वाले द डेली अंसारी के 20 नवम्बर 1945 के ख़बर के अनुसार लाल क़िले में मौलाना अहमद सईद साहब ने नमाज़ ईद पढ़ाई, जो अधिकारिक तौर पर 80 साल के बाद लाल क़िले में पढ़ी गई पहली नमाज़ है..॥

अंग्रेज़ों ने लाल क़िले से मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र को निकाल कर रंगून भेजने के बाद इस जगह पर पूरी तरह क़ब्ज़ा कर लिया था। यहाँ का निज़ाम उनके अनुसार चलने लगा था। उन्होंने यहाँ अपने फ़ौजी बैरक बना डाले थे।
इधर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान रंगून में बहादुर शाह ज़फ़र के मज़ार पर नेताजी सुभाष चंद्रा बोस पहुँच कर “दिल्ली चलो” का क़ौल देते हैं। जिसके बाद आज़ाद हिंद फ़ौज भारत की तरफ़ कूच करती है। पर उनकी हार हो जाती है और उन्हें सरेंडर करना पड़ता है।
Why did Subhas Chandra Bose feel the need to acknowledge Emperor Bahadur Shah Zafar?
जिसके बाद अंग्रेज़ इन सिपाहियों को ज़लील करने के लिए आख़री मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की तरह लाल क़िला में ही ट्रायल के लिए लाते हैं। बड़ी संख्या में उन्हें यहाँ के बैरक में क़ैद रखते हैं। इसी बीच ईद आ जाती है, और वहाँ नमाज़ पढ़ाने के लिए जमियत उल्मा ए हिंद के महासचिव मौलना अहमद सईद साहब जाते हैं, और ये लाल क़िले के इतिहास में पहला मौक़ा था जब मुग़लों के ज़वाल के बाद यहाँ नमाज़ पढ़ी गई। साथ ही यहाँ ये भी माँग की गई के अगले हफ़्ते गुरु नानक जी की जयंती है, इस लिए सिख क़ैदियों को भी उनकी जयंती मनाने की इजाज़त दी जाए।

ज्ञात हो के जमियत उल्मा ए हिंद वही संगठन है जिसका नाम नेताजी सुभाष चंद्रा बोस ने 31 अगस्त 1942 को अपने रेडियो संदेश के दौरान लेते हुए कहा था के ये भारत के उलमाओं यानी मुस्लिम गुरुओं का सबसे बड़ा संगठन है और इसे एक देशभक्त मुफ़्ती किफ़ायतउल्लाह देहलवी लीड कर रहे हैं। ये आपको मालूम होना चाहिए के मौलना अहमद सईद ख़ुद मुफ़्ती किफ़ायतउल्लाह देहलवी के शागिर्द हैं, जो भारत की जंग ए आज़ादी की ख़ातिर 1921 से 1947 के दरमियान आठ बार जेल गए।