किसी सिपाहसालार नहीं, सूफ़ी बुज़ुर्ग के नाम पर है बख़्तियारपुर


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एक बार क़ुतुबमीनार देखने गया; वहाँ के गाइड ने बताया के ये ग़ुलाम वंश के पहले बादशाह क़ुतुबउद्दिन ऐबक के नाम पर है, पर दर हक़ीक़त वो वहीं पास में आराम फ़र्मा रहे एक सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत बख़्तियार क़ुतुब काकी (र) के नाम पर है। इसी तरह की कई फ़ेक कहानी हमें भारत के अलग अलग हिस्से में सुनने को मिल जाती है!

अब यही मामला देख लीजिए… हमारे कुछ जानने वाले हैं, अभी पटना ज़िले के एक बिलकुल ही छोटे से क़स्बे बख़्तियारपुर के नाम को बदलने को ले कर आंदोलन की बात कर रहे हैं। उनका कहना है के इस जगह का नाम बख़्तियारपुर एक तुर्क सिपाहसालार बख़्तियार ख़िलजी के नाम पर है, जिसने नालंदा और आस पास के इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया था। और साथ ही यहाँ पर मौजूद बुद्ध मत के केंद्र नालंदा यूनिवर्सिटी को तबाह कर दिया था। ठीक है.

अब आते हैं मुद्दे पर, पटना ज़िला में एक क़दीमी क़स्बा है बाढ़, इसके क़दीम होने की कई वजह है, उसमें एक वजह है वहाँ का गंगा किनारे मौजूद उमानाथ मंदिर. इस शहर में 1812 के दौरान डी० एच० बुकनान आये। वो मगध के इलाक़े का सर्वे करने आए थे, डी० एच० बुकनान बाढ़ में कई दिन रहे, उन्होंने कई जगह दौरा किया, हर जगह के बारे में डीटेल से लिखा, उन्होने बाढ़ को बार (Bar) लिखा, पर उसने बख़्तियारपुर के बारे में कुछ भी नही लिखा, अगर बख़्तियारपुर सच में कोई समृद्ध इलाक़ा होता तो उसका डीटेल लिखा जाता, क्यूँकि उसने बख़्तियारपुर के आस पास के तमाम इलाक़े दुरियापुर, हुलासगंज, हिलसा और बिहार(शरीफ़) का दौरा किया, सबके बारे में कई पन्ना लिखा। पर बख़्तियारपुर के बारे में एक शब्द लिखना गवारा नही समझा.

BAKHTIYARPUR

वैसे बख़्तियारपुर के आस पास कई गाँव हैं, सलीमपुर, ख़ुसरुपुर, हसनचक, मोईनपुर, हाजीपुर, बुर्हनापुर, बाज़िदपुर, इब्राहीमपुर, मुबारकपुर, सैदपुर, तालिबपुर, नेज़ामपुर, मसूदबिघा, मोहीउद्दिनपुर आदि। अब इन नाम पर ग़ौर कीजिए… ये अधिकतर नाम किसी न किसी बुज़ुर्ग सूफ़ी के नाम पर है, जैसे सलीमपुर फ़तेहपुर सिकरी वाले हज़रत सलीम चिशती (र), बाज़िदपुर बस्ताम के बायज़ीद बस्तामी (र), ख़ुसरुपुर दिल्ली वाले अमीर ख़ूसरू (र), नेज़ामपुर दिल्ली के हज़रत नेज़मउद्दीन औलिया (र), मसूदबिघा भी सालार मसूद (र) के नाम पर है, ठीक वैसा ही बख़्तियारपुर का नाम क़ुतुब उल अक़ताब, ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद बख़्तियार अलहुस्सैनी क़ुतुबउद्दिन बख़्तियार काकी (र) के नाम पर है। बाक़ी कुछ नाम क़ाज़ी और ज़मीनदार के नाम पर है.

इस सिलसिले में जब हम Archaeologist Dr Anantashutosh Dwivedi से बात करते हैं, जिन्होंने बिहार और ख़ास कर मगध के इलाक़े में ही कई बड़ी Archaeological खोदाई अपनी निगरानी में करवाई और करवा रहे हैं, का मानना है के बख़्तियार ख़िलजी जिसने पूरे इलाक़े को जीत लिया था, वो किसी देहात का नाम अपने नाम पर क्यूँ रखता ?? अगर उसे अपने नाम पर कुछ रखना होता तो वो आजके बिहार शरीफ़ का नाम अपने नाम पर रखता क्यूँकि उस समय राजधानी तो वही थी। उनके अनुसार बख़्तियारपुर वैसे भी पुरातत्वविभाग के लिए कोई बहुत महत्वपूर्ण जगह नही है।

उनका भी मेरी तरह ये मानना है के किसी 700 साल पुराने गाँव का नाम आज तक बरक़रार रहना नामुमकिन है, वो भी उस समय जब वक़्त के साथ इलाक़े कई में बड़े बादशाह और सिपाहसालार गुज़रे जिनमें शेरशाह सूरी और मान सिंह का नाम महत्वपूर्ण है.

असल में बख़्तियारपुर का नाम उस समय अमर हो गया जब 1866 में Howrah–Delhi मेन लाइन की शुरुआत हुई, उस समय गुलज़ारबाग़ और बाढ़ में अफ़ीम का गोदाम हुआ करता था, अंग्रेज़ों ने रेल लाइन बिछाई गुलज़ारबाग़ और बाढ़ के बीच, इस रेल लाइन के ज़द में कई गाँव आये, तो सहूलियत के हिसाब से कई छोटे छोटे स्टेशन बनाये गये, और उसी में से एक बख़्तियारपुर में भी बना। 1902 में इसमें तलैया लाइन भी जुड़ा और ये छोटा सा स्टेशन Junction बन गया; और Bakhtiyarpur Junction के नाम से जाना गया.

बाढ़ और आस पास के इलाक़े में वक़्त के साथ बहुत सारी जगह के नाम ख़ुद ब ख़ुद बदल गए, जैसे क़ाज़ी बुरहानद्दीनचक अब बूढ़न्नीचक हो गया, बार ख़ुद बाढ़ हो गया, बेहार(Behar) भी बिहार(Bihar) हो गया, पटना सिटी का एक अंग्रेज़ पर बना ‘Mangles Tank’ हिंदुओं का पवित्र मंगल तालाब हो गया, तो एक अंग्रेज़ के नाम पर बसा मुहल्ला Bakerganj आज किसी मुस्लिम के नाम पर मुहल्ला समझा जाता है, ये तमाम वो जगह हैं जिनकी लगभग 500 साल तक की रेकोर्डेड हिस्ट्री है, पर वक़्त के साथ सब इलाक़े का नाम बदल गया। लेकिन एक बख़्तियारपुर है, जो मुख्यमंत्री नितीश कुमार का अबाई वतन होने के बाद भी एक देहात से अधिक कुछ नही, पर उसका नाम पिछले 700 साल से एक है। ग़ज़ब.

बख़्तियारपुर का नाम सिर्फ़ इसलिए पब्लिक डोमेन में रह गया क्यूँकि ये हाल का बसा हुआ एक गाँव है, और इसके सामने से रेल की लाइन गुज़र गई। और स्टेशन का नाम उसी के नाम पर रख दिया गया। इसी स्टेशन की वजह कर एक गाँव को शहर के नाम से जाना गया। वर्ना आज भी इस छोटे से क़स्बे में नितीश कुमार के घर के इलावा यहाँ कुछ भी नही है। एक तेराहा सड़क है, और एक रेलवे जंक्शन, बस.

बाक़ी बख़्तियारपुर पास अलीपुर, महमूदपुर, अकबरपुर, इब्राहीमपुर, मुहम्मदपुर, मोबारकपुर, निज़ामपुर, मुस्तफ़ापुर आदि जैसे सैंकड़ों गाँव को कौन पूछता है! वैसे मैंने उपर जितने भी मुस्लिम गाँव और मुहल्ले के नाम गिनाये वो अधिकतर वो हैं जहां मुस्लिम हैं ही नही; अब उस फिर उस पर बात शुरू होगी के इसका नाम ऐसा कैसे ? उसकी भी कहानी है, लेकिन उसे समझने के लिए पढ़ना होगा। क्या करना होगा?? ‘पढ़ना’….. पर आपको तो इलेक्शन का माहौल देख सियासत करनी है, कीजिए…… वैसे नाम क्या रखना है? पंडित शीलभद्र याजी के नाम पर रखने की माँग ज़माने से की जा रही है, पर नितीश कुमार हमेशा इनकार करते आ रहे हैं, शायद वो ख़ुद के नाम पर इस जगह का नाम ‘सुशासनपुर’ रखना चाहते हैं.

वैसे बिहार में एक बख़्तियारपुर और है, जिसका नाम है सिमरी बख़्तियारपुर, वो किसके नाम पर है, ये एक शोध का विषय है.


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.