श्रद्धांजलि : पत्रकार कुलदीप नैयर की याद में
Shubhneet Kaushik
दिग्गज पत्रकार कुलदीप नैयर का आज 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 1923 में सियालकोट में जन्मे कुलदीप नैयर विभाजन के बाद भारत आए। पुरानी दिल्ली के बल्लीमाराँ इलाके से निकलने वाले उर्दू अख़बार ‘अंजाम’ से उन्होंने अपने पत्रकारिता के लंबे सफर की शुरुआत की। इसलिए वे मज़ाकिया अंदाज़ में कहा भी करते थे कि ‘मेरा आगाज ही अंजाम से हुआ।’ उर्दू और फ़ारसी के जानकार कुलदीप नैयर ने इसी दौरान 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या की खबर को भी कवर किया था, जिसका मर्मस्पर्शी विवरण उन्होंने अपनी किताब ‘स्कूप’ में दिया है।
Kuldip Nayar/Kuldeep Nayyar a veteran Indian journalist, syndicated columnist, human right activist and an impeccable author passed away at 95 in Delhi, leaving behind a vaccumm that will be difficult to fill. May his soul rest in peace.#KuldeepNayyar #KuldipNayar pic.twitter.com/5lmOJVIuW1
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) August 23, 2018
‘अंजाम’ के बाद वे बल्लीमाराँ से ही छपने वाले उर्दू दैनिक ‘वहदत’ से जुड़े। यहीं काम करते हुए एक बार उन्होंने अख़बार के कार्यालय के हाल में पड़ी एक चारपाई पर लेटे हुए एक बुजुर्ग शख़्स को देखा। जब उन्होंने अपने एक सहयोगी से उन बुजुर्ग के बारे में पूछा तो उन्हें मालूम हुआ कि वे उनके प्रिय शायर और राष्ट्रवादी नेता हसरत मोहानी हैं। यहीं से हसरत मोहानी के साथ उनका लगाव बढ़ा, जिन्होंने कुलदीप नैयर को अँग्रेजी में पत्रकारिता करने की सलाह दी थी।
आगे चलकर कुलदीप नैयर ‘द स्टेट्समैन’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादक भी बने। आपातकाल के दौरान उन्होंने लोकतन्त्र का गला घोटने के विरुद्ध आवाज़ उठाई, और वे उन पहले पत्रकारों में थे, जिन्हें मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।
कुलदीप नैयर 1990 में अमेरिका में भारत के उच्चायुक्त भी रहे और बाद में वे राज्य सभा के सदस्य भी रहे। मानवाधिकार के पक्ष में उन्होंने लगातार आवाज़ उठाई और भारत-पाक के बीच शांति व मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के लिए भी वे हमेशा प्रयासरत रहे।
अपनी चर्चित आत्मकथा ‘बियोंड द लाइंस’ के अलावा कुलदीप नैयर ने ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’, ‘इमरजेंसी रिटोल्ड’ और ‘स्कूप’ सरीखी किताबें लिखीं। लाहौर में भगत सिंह पर चले मुकदमे पर कुलदीप नैयर ने एक किताब लिखी, ‘विदाउट फीयर : द लाइफ एंड ट्रायल ऑफ भगत सिंह’।
वे हिंदुस्तान में उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, जिसने बँटवारे को दंश को झेला था और अमानवीयता व हिंसा के उस खौफनाक मंजर को देखने के बाद जो जीवनपर्यंत शांति, मैत्री, सौहार्द्र व भाई-चारे की स्थापना में सक्रिय रही। सादर नमन!