बेगम हज़रत महल : अंग्रेज़ों के झण्डे को दुनिया में सबसे पहले ज़मींदोज़ करने वाली।


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हफ़ीज़ किदवई

कुछ तारीख़ें सिर्फ़ तारीख़ भर नही होती बल्कि पूरे एक ज़माने का ढलना होती है। आज वही 7 अप्रैल है। जब अवध की शान और ताक़त मोहम्मदी खानम यानि बेग़म हज़रत महल दुनिया को छोड़ गई थी। अवध की वह बेगम जिसने लपक कर 1857 क्राँति की आग थामी थी।  जिसने लखनऊ में अंग्रेज़ों के झण्डे को दुनिया में सबसे पहले ज़मींदोज़ किया था। नवाबो के किस्से तो खूब ज़बानों पर हैं, उनके नाज़ुक मिजाज पर तो खूब बाते होती रही हैं मगर उनके ही बीच से उनकी नाज़ों में पली बढ़ी बेगम ने जब क्रांति की सख़्त तपिश सही उसका ज़िक्र कम ही होता है।

बेगम ने हर ओर मोर्चा लिया। सल्तनत की खूबसूरत ठण्डी हवाओं को सख़्त लू के थपेड़ो में बदलते देखा। अपनी नाक के नीचे खड़े पियादों को बदलते देखा। जब ज़मीन की वफ़ादारी की बात आई तो पल पल यही लखनऊ से नेपाल तक वफादारों को बालिश्त बालिश्त भर जागीरों में बिकते हुए देखा। अवध के नफीस तख़्त से काठमांडू की तंग गालियों में ज़िन्दगी से लड़ने वाली मज़बूत, संवेदनशील, सहनशील और जुझारू बेगम का ज़िक्र आज तो कर ही लें। हमे याद है पिछले दिनों हमारी मांगो पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बेगम हज़रत महल यूनिवर्सिटी बनाने का वादा किया था। ख़ैर सरकार ही चली गई। मेरी समझ से आज बेगम को मुल्क़ की मज़बूती के लिए याद कीजिये।

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जिस तरह 1857 में बहादुर शाह ज़फ़र को हिंदुस्तान से बाहर बर्मा में दफनाया गया, उनकी यही तड़प थी कि अपने मुल्क में दो गज ज़मीन नही मिली। उसी तरह बेगम को भी दूर नेपाल में जगह मिली। अपने मुल्क अपने अवध की ज़मीन इतनी तंग हो गई कि उसमें बेग़म के लिए जगह ही नही बची। बेगम ने चाहा ही क्या था,अपने अवध की आज़ादी। आज़ादी तो कल भी चुभती थी और आज भी चुभती है। वह टूटकर मिटकर जूझ गई अवध को आज़ाद देखने के लिए..

अफसोस तो तब होता है जब महिलाओं पर बराबरी और उनको आगे लाने वाले समाजसेवियों के बैनर में बेगम हजऱत महल नही होती हैं। अवध पर जान छिड़कने वालो की ज़बान पर बेगम हज़रत महल नही होती हैं। कवियों, लेखकों की गोष्ठियों में हज़रत महल नही होती हैं।
यही वह हैरतअंगेज़, जुझारू बेगम थी जो बिरतानियो से लड़ती हुई अपने दिल की सुकून गाह से निकली। अवध की खूबसूरत सरज़मीन से रुखसत होकर नेपाल के काठमांडू में आज भी सो रही है।

ज़रा सा बेग़म हज़रत महल को याद कर लीजिये शायद उनका जूझना सुआरत हो जाए। शायद उनका काँटों पर चलना मख़मल में बदल जाए। उनके दिल की धड़कन महसूस कीजिये वह आज भी हर बोलने वाले में ज़िंदा हैं।हर आज़ाद ख्याल में ज़िंदा हैं।

लेखक #hashtag का उपयोग कर लगातर विभिन्न मुद्दों पर लिखते रहे हैं।


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