सैयद नज़रे इमाम, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आँख का इलाज करने वाले डॉक्टर
डॉक्टर सैयद नज़रे इमाम का जन्म 1924 को दरभंगा के मलिकपुर में हुआ था। आपके वालिद का नाम सैयद अहमद हुसैन था, जो सिवान के हसनपूरा के रहने वाले और पेशे से सरकारी पेशकर थे।
सैयद नज़रे इमाम ने छपरा ज़िला स्कूल से मैट्रिक की, फिर पटना साइन्स कॉलेज के आइएससी का इम्तिहान पास किया। उसके बाद पटना के प्रिन्स ऑफ़ वेल्स मेडिकल कॉलेज में दाख़िला लिया और 1948 में एमबीबीसी कर डॉक्टर बने। और उसके बाद 1958 में आपने एमएस ईएनटी किया। और एक डॉक्टर की हैसयत से लोगों की ख़िदमत में लग गए।
धीरे धीरे आपकी शोहरत भारत सहित पूरी दुनिया में होने लगी। आपको दुनिया भर में होने वाले सेमिनार में मदु किया जाने लगा। इंडियन नेशनल मेडिकल कॉन्फ़्रेन्स में 1952 में हिस्सा लिया और इसी तरह अलग अलग सेमिनार में जाते रहे।
एक बार आपको भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आँख का इलाज करने बुलाया गया। जब उन्हें पता चला के डॉक्टर सैयद नज़रे इमाम उनके अबाई ज़िला छपरा के रहने वाले हैं तो उन्होंने उनसे भोजपुरी में बात करना शुरू कर दिया। दोनो ने काफ़ी बात की, और जाते समय डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें एक घड़ी भी तोहफ़े में दी।
आपकी शोहरत की वजह कर आपको बहरैन की हुकूमत ने ख़सुसी दरखास्त कर अपने मुल्क बहरैन बुलाया। 1968 में आप आँख के स्पेशलिस्ट की हैसयत से बहरैन गए भी। पर क़िस्मत को कुछ और मंज़ूर था। आपको वहाँ दिल का दौरा पड़ गया और बीमार हो कर नवम्बर 1971 में आप पटना वापस आ गए और 28 अक्तूबर 1972 को आपका इंतक़ाल मात्र 42 साल की उम्र में हुआ।
आप डॉक्टर के पेशा के साथ समाजी काम में भी काफ़ी आगे रहे, आप शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे और साथ रियासती हज कमेटी के मेम्बर भी। आपको उर्दू अदब में में तंज़ निगार के तौर पर भी जाना जाता है, आपने उर्दू में काफ़ी कुछ लिखा है। आपके लेखनी का मजमुआ “सफ़रिस्तान” और “और दूसरा ज़ख़्म नश्तर” के रूप में शाय भी हो चुका है।