जब दरभंगा महाराज के रोड शो में सड़क पर उतर आया कलकत्ता
कुमुद सिंह
तत्कालीन वायसराय किसी भी कीमत पर दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह को स्टेट काउंसिल के चुनाव (1893) में हराना चाहते थे। पहले तो लक्ष्मीश्वर सिंह के खिलाफ पटना क्षेत्र से एक मुस्लिम वकील को चुनाव के मैदान में खडा कर दिया। जब उससे भी बात नहीं बनी तो वायसराय के लोग लक्ष्मीश्वर सिंह को आम लोगों के प्रतिनिधि के बदले एक महाराजा के रूप में प्रचारित कर रहे थे। इस बात को लेकर दरभंगा महाराज ने वासराय को सबक सिखाने का फैसला किया।
लक्ष्मीश्वर सिंह को रुलिंग किंग का दर्जा नहीं मिला था। उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि नहीं मिल सकी। उन्हें दो बार मौका मिला इस उपाधि को पाने का, लेकिन पहली बार उन्हें मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के पोते को पनाह देने और राज्य अतिथि का दर्जा देने के कारण यह उपाधि नहीं दी गई, तो दूसरी बार कांग्रेस के लिए जमीन मुहैया कराने के कारण उन्हें यह उपाधि से वंचित रहना पडा।
दूसरी बार जब उन्हें यह उपधि नहि मिली तो उन्होंने इस उपाधि की मांग छोड दी और खुद को जनप्रतिनिधि के तौर पर स्थापित कर लिया। जनता के मुद्दे उठाने लगे। तत्कालीन वायसराय इस कारण इतने परेशान हो गये कि इन्हें सदन में आने से रोकने के लिए हर प्रयास शुरु कर दिया।
वायसराय के लोगों ने जब लक्ष्मीश्वर सिंह को महाराजा कह कर चुनावी मैदान में हराने की कोशिश की, तो उन्होंने कलकत्ता में ऐसा रोड शो किया कि वायसराय भी भौंचक रह गए। महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की कोलकाता की सडकों पर स्वर्ण मुद्रा लुटाते हुए जनता के प्रतिनिधि के बदले खुद को महाराजा घोषित किया और कहा कि जो लोग उन्हें राजा मानते हैं वो मुद्रा स्वीकार करें। उनके इस रोड शो में मानो पूरा कलकत्ता सड़क पर उतर आया। सभी ने मुद्रा लेने से इनकार कर दिया और एक सुर में उनकी जयकार करने लगे। उनके जयकार से वायसराय की नींद खुली और वो जानना चाहा कि आखिर कौन ऐसा आया है जिसकी जयकार हो रही है और मुझे उसके आने की खबर भी नहीं है। उसे जब बताया गया कि दरभंगा के राजा सामनेवाली सडक से गुजर रहे हैं, तो उसने तत्काल मिलने की इच्छा प्रकट की। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह ने वायसराय को बताया कि अगर आप मुझे रुलिंग किंग का दर्जा दे देते या महाराजाधिराज की उपाधि दे देते तो मुझे तोप की सलामी मिलती और लोग जान जाते ही दरभंगा कलकत्ता पहुंचा है, लेकिन जब वह नहीं हो सका तो जनता की जयघोष से ही कलकत्ता को जानकारी मिल रही है कि दरभंगा कलकत्ता आया है। दरभंगा हमेशा अपना वजूद खुद बनाया है और यह चुनाव जीतकर इस बार भी अपना वजूद खुद बनायेगा। महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह वो चुनाव भारी मतों से जीत कर भारत के पहले जनप्रतिनिधि बने, लेकिन यह दुखद रहा कि 1898 में लक्ष्मीश्वर सिंह का निधन हो गया और दरभंगा के अगले राजा रामेश्वर सिंह को महाराजाधिराज की उपाधि मिली।