1857 की क्रांति के नायक बाबू कुंवर सिंह और उनके मुस्लिम साथियों की वीरगाथा

जब बिहार मे 1857 की क्रांति की बात होती है तो सिर्फ़ ‘बाबू कुंवर सिंह’ का नाम लिया जाता है..

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1857 की बक़रईद : बहादुर शाह ने क़ुरबानी पर लगा दी थी क़ानूनी रोक

  प्रोफ़ेसर कपिल कुमार सदियों से भारत की ये रीत बनी रही है कि हम भारतीय आपस में अपने घर

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पटना का कमिश्नर विलियम टेलर जब निलंबित हो कर बना वकील

  अरूण सिंह 1857 में स्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई या सिपाही विद्रोह के वक्त पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम

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1857 सुना तो है मगर जानते भी हैं क्या इसे ?

हफ़ीज़ किदवई कोई कहता है की यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था तो कोई कहता है की यह जन संघर्ष की

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बेगम हज़रत महल के जासूस जिम्मी ग्रीन उर्फ़ मोहम्मद अली ख़ान की दास्तान

  एक रोज़ अपने ख़ैमे में लेटा था कि, केक बेचने वाले की आवाज़ सुनाई दी, गोश्त खा खा कर

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बेगम हज़रत महल : अंग्रेज़ों के झण्डे को दुनिया में सबसे पहले ज़मींदोज़ करने वाली।

हफ़ीज़ किदवई कुछ तारीख़ें सिर्फ़ तारीख़ भर नही होती बल्कि पूरे एक ज़माने का ढलना होती है। आज वही 7

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बाबु कुंवर सिंह के सबसे प्रमुख सिपहसालार थे क़ाज़ी ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ां।

  क़ाज़ी ज़ुल्फ़ीक़ार अली बिहार के जहानाबाद ज़िला के क़ाज़ी दौलतपुर के रहने वाले थे। जो बाबू कुंवर सिंह के

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जब अयोध्या की बाबरी मस्जिद ‘हिन्दु मुस्लिम एकता’ की मिसाल हुआ करती थी!

  Md Umar Ashraf बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का असली खेल 1857 के बाद शुरु हुआ है। 1850 और

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बाहदुर शाह ज़फर : हिन्दुस्तान का वो बादशाह जिसे ख़ैरात में मिली मिट्टी के नीचे दफ़ना दिया गया ……

  17 अक्तुबर 1858 को बाहदुर शाह ज़फर मकेंजी नाम के समुंद्री जहाज़ से शाही ख़ानदान के 35 लोग के

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अंग्रेजों को बैन करनी पड़ी थी बहादुर शाह ज़फ़र की लिखी ये ग़ज़ल

  Rohit Upadhyay बिहार के बक्सर में युद्ध चल रहा था. इधर 40 हज़ार की फ़ौज थी और उधर बमुश्किल

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बहादुर शाह ज़फ़र : हिन्दुस्तान का वह आख़री मुग़ल बादशाह जिसे ‘दो गज़ ज़मीं भी न मिल सकीं कुए यार में’

  Ali Zakir कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें इतनी जगह कहां है दिल-ए-दाग़दार में आखिरी मुगल

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जब भारत की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़े नादिर अली और जयमंगल पांडेय

  सन् 1857 ई. की क्रांति अंग्रेज़ी सत्ता को एक महान चुनौती थी। जिसने ब्रिटिश सरकार को झकझोर दिया। अंग्रेज़ों

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गंगू मेहतर : 1857 की क्रांति का एक गुमनाम नायक जिससे अंग्रेज़ आज भी नफ़रत करते हैं।

  गंगू मेहतर विट्ठुर के शासक नाना साहब पेशवा की सेना में नगाड़ा बजाते थे। गंगू मेहतर को कई नामों

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