महान भारतीय क्रांतिकारी मौलवी बरकतुल्लाह भोपाली के क़बर की मिट्टी अमेरिका से भारत कब लाई जाएगी ??
अज़ीम इंक़लाबी, हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता, आरज़ी हुकुमत ए हिन्द (1915) मे प्रधानमंत्री की हैसियत रखने वाले मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली अपने ज़िन्दगी के शुरुआती दौर मे जिस शख़्स से सबसे अधिक मुतास्सिर (प्राभावित) थे उस शख़्स का नाम है अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी जिनका इंतकाल 9 मार्च 1897 को तुर्की की राजधानी इस्तांबुल मे हुआ था, फिर 1944 मे अफ़ग़ानिस्तान सरकार के इलतेजा और दरख़्वास्त पर उनके क़बर की मिट्टी को इस्तांबुल, से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल लाया गया और काबुल युनिवर्सिटी मे वापस दफ़न किया गया। पर क्या मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली के क़बर की मिट्टी को अमेरीका से लाकर वापस हिन्दुस्तान के भोपाल मे दफ़न किया जाएगा ?? क्युंके मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली की आख़री ख़्वाहिश थी के जब उनका वतन ए अज़ीज़ हिन्दुस्तान आज़ाद हो जाए तो उन्हे वापस भोपाल मे दफ़न किया जाए … मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली ने हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए अपने जीवन के 45 साल दुनिया के ख़ाक छानते हुए गुज़ार दी पर उन्हे मिला क्या ? अपने ही मुल्क मे दो गज़ ज़मीन तक नही ?
The Afghan Mission in Kabul 1915/16
From left to right the photograph shows :- Kâzım Orbay, Werner von Hentig, Walter Röhr, #RajaMahendraPratap, Kurt Wagner, Oskar Niedermayer, Günther Voigt and #BarkatullahBhopali.
Photo © Stiftung Bibliotheca Afghanica#AzaadiKiNishaniyan pic.twitter.com/DBuSo1wrId
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) August 12, 2018
क़ाज़ी ए रियासत भोपाल मौलवी अब्दुल हक़ काबुली से मंतिक़, फ़लसफ़ा और तफ़्सीर वग़ैरा सीख रहे मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली को पहली बार अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी से मिलने का शर्फ़ अपने उस्ताद के घर पर ही हासिल हुआ।
हुआ कुछ यूं के 1882 मे अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी फ़्रांस में दर्स दाते हुए हिन्दुस्तान आए और बरकतुल्लाह भोपाली के उस्ताद मौलवी अब्दुल हक़ काबुली के बुलावे पर ग्वालियर, बड़ौदा होते हुए भोपाल तशरीफ़ लाए। भोपाल मे उनके क़ौल को समझने वाले चुनिंदा लोग ही थे जिसमे एक बरकतुल्लाह भोपाली भी थे। बरकतुल्लाह भोपाली ने ना सिर्फ़ अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी से मुलाक़ात की बल्के उनके ख़्यालात से बहुत मुतास्सिर भी हुए।
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जब बरकतुल्लाह भोपाली तालीम हासिल कर रहे थे, तब उन्हे शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी जैसी अज़ीम शख़्सयत को पढ़ने का मौक़ा मिला लेकिन वोह अमली तौर उन्हे समझ न सके थे; पर अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी से मुलाक़ात ने उनके अंदर एक नई तड़प फूंक दी लेकिन ये समझने से वो फिर भी महरुम रहे के करें क्या ??
इसी जज़बात को सीने मे लिए वो भोपाल से एैसे ग़ायब हुए के फिर दोबारा लौट कर नही आए। अपनी तमाम ज़िन्दगी मुल्क की आज़ादी के लिए वक़्फ़ कर दिया।
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अल्लामा जमालउद्दीन अफ़्गानी के भोपाल से चले जाने के चंद रोज़ बाद ही बरकतुल्लाह भोपाली जनवरी 1883 को भोपाल से ग़ायब हो गए। किसी को कुछ नही बताया, जेर ए तालीम मे, यानी पढ़ाई के दौरान वालिद गुज़र चुके थे; वालिदा भी नहीं थी, एक बहन थी जिसकी शादी हज़रत शाह नाम के शख़्स से हुई थी, इनके इलावा उस्ताद, शागिर्द और दोस्तों की एक बड़ी तादाद थी फिर भी किसी को कुछ नही बताया, उस समय उनकी उमर तक़रीबन 23-24 साल रही होगी! इसके बाद बरकतुल्लाह भोपाली को इंगलैंड, रूस, इंगलैंड, अफ़ग़ानिस्तान, सुट्ज़रलैंड, जापान, इटली, जर्मनी, सर्बिया, तुर्की जैसे मुल्क में हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए ख़ाक छानते हुए पाया गया। और आख़िर 20 सितम्बर 1927 को अमेरिका में आख़री सांस ली! आख़री ख़्वाहिश थी के जब मेरा मुल्क हिन्दुस्तान आज़ाद हो जाये तो मुझे वापस मेरे वतन ए अज़ीज़ में दफ़न कर दिया जाये! पर वापस दफ़न तो दूर आज तक आज़ाद भारत का कोई भी प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली के अमेरिका स्थित क़बर पर हाज़री तक देने नही गया जो 1 दिस्मबर 1915 को काबुल में बनी पहली हिन्दुस्तानी सरकार में प्रधानमंत्री थे और राजा महेन्द्र प्रताप इसके राष्ट्रपति!