अहमद हुसैन : एक शिक्षक जो माँ कि ख़्वाहिश पूरा करने के लिए बने कलेक्टर
अहमद हुसैन की पैदाइश 1886 को पटना ज़िला के नेवरा में हुई थी। शुरुआती तालीम घर पर हासिल की। अपने वालिद मौलवी अमजद हुसैन से अरबी और फ़ारसी सीखी। उसके बाद पटना कॉलेजीएट स्कूल में दाख़िला लिया। इंट्रेंस का इम्तिहान फ़र्स्ट डिविज़न से पास किया।
इसके बाद आगे की तालीम के लिए अलीगढ़ के मोहमडन ऑरीएंटल कॉलेज गए। वहाँ से एफ़ ए पास करने के बीए किया। अंग्रेज़ी सहीत कई ज़ुबान पर ऊबूर हासिल किया। उसके बाद आपने रेलवे स्कूल में असिस्टेंट हेडमास्टर का ओहदा सम्भाला। साथ अंग्रेज़ी और इतिहास का दर्स देते थे।
ये पेशा उन्हें पसंद था पर उनकी माँ की ख़्वाहिश थी के उनका बेटा कलेक्टर बने। 1910 में माँ की ख़्वाहिश पर कलेक्टरी का फ़ॉर्म मुज़फ़्फ़रपुर से भरा और 1911 में डिप्टी कलेक्टर का ओहदा मुज़फ़्फ़रपुर में हासिल किया। तबादला होते हुवे आपने अपनी सेवाएँ छपरा, आरा, सहसाराम में दीं।
1925 में बिहार सरकार ने आपको हाजीपुर का SDM बना दिया। 1926 में हुकूमत ने ख़ान साहब का लक़ब दिया। और आप ख़ान साहब अहमद हुसैन हो गए। 1929 में आप औरंगाबाद के SDM बना दिए गए। 1931 में भभुवा के SDO बने। 1933 में आपको पटना सदर का SDO बना दिया गया। 1935 में स्पेशल मेजिस्ट्रेट बना कर हज़ारीबाग़ भेजा गया।
1937 में हज करने चले गए और फिर ख़ान साहब अलहाज अहमद हुसैन के नाम से जाने गए। हज से लौटने के बाद 1939 में राँची के सीनियर डिप्टी कलेक्टर बनाए गए। फिर पटना आए और 1941 में पटना ज़िला के कलेक्टर बने। और इसी ओहदे से 1941 में रिटायर हो गए।
आपको लिखने पढ़ने का बड़ा शौक़ था, उर्दू और अंग्रेज़ी दोनो ज़ुबान में आपके मज़ामीन मैगज़ीनों में छपा करते थे। 1943 में “इस्लाम और जदीद मसायल” नाम से आपका एक लेख अंग्रेज़ी ज़ुबान मेन कलकत्ता से पब्लिश हुआ, जो बहुत मशहूर हुआ।
1940 में आपने पटना के एग्जीबिशन रोड पर एक मकान बनाया जिसका नाम “दारुस्सलाम” रखा। इसी मकान में अपने ज़िंदगी का आख़री आठ साल गुज़ार कर 8 जनवरी 1948 को इंतक़ाल कर गए। आपको ख़ानक़ाह मजीबिया के क़ब्रिस्तान में दफ़न कर दिया गया।