माउंटबेटन की पहली शर्त थी भारत की आज़ादी


Share this Post on :

किंग जॉर्ज षष्टम ने 1947 से पूर्व भी कई बार लॉर्ड लुई माउंटबेटन को भारत का वासराय बनने का प्रस्‍ताव दिया था, लेकिन लॉर्ड लुई माउंटबेटन उसे सिरे से खारिज कर देते थे। वो शाही नौसेना का सुप्रीम कमांडर बनने की अपनी इच्‍छा के कारण भारत नहीं आना चाहते थे। किंग जॉर्ज षष्टम तत्कालीन वायसराय वेवेल से संतुष्‍ट नहीं थे और उनके पास भारत जैसे उपनिवेश के लिए अपने किसी खास की जरुरत थी। क्‍योंकि भारत का वायसराय सीधा राजा को रिपोर्ट करता था और वो मिनिस्‍टर आफ ब्रिटिश कॉलोनी के भीतर नहीं था,इसलिए किंग जॉर्ज षष्टम अपने खास को ही भारत भेजना चाहते थे। किंग जॉर्ज षष्टम ने अपने भाई लॉर्ड लुई माउंटबेटन को अपनी विवशता बताते हुए कहा कि भारत में सत्‍ता हस्‍तानांतरण की प्रक्रिया चल रही है। वेवेल यह काम नियत समय पर नहीं कर पायेंगे। वेवेल ने 1948 का समय तय किया था, लेकिन उनकी ताजा रिपोर्ट से जाहिर होता है कि यह काम एक साल में संभव नहीं है। वहां के हालात बद से बदतर हो रहे हैं। मेरे पास आप से बेहतर प्रतिनिधि नहीं है। किंग जॉर्ज षष्टम के प्रस्‍ताव पर ब्रिटिश पीएम एटली के समक्ष लॉर्ड लुई माउंटबेटन ने तीन शर्त रखे। उनकी पहली शर्त थी कि उनका कार्यकाल दो साल से लंबा नहीं होगा दूसरी शर्त थी कि उन्‍हें भारत में सत्‍ता हस्‍तानांतरण की तरीख तय करने का अधिकार हो। लॉर्ड लुई माउंटबेटन की तीसरी और अंतिम शर्त थी कि वासराय बनने के बावजूद उनकी नौसेना की नौकरी कायम रहे और भारत से लौटने पर उनकी पदोन्‍नति के साथ वापसी हो। किंग जॉर्ज षष्टम ने उनकी तीनों शर्त को स्‍वीकार करते हुए उन्‍हें 20 फरवरी 1947 को भारत का वायसराय बनाने का निर्णय लिया। लॉर्ड लुई माउंटबेटन का नौसेना प्रेम ही थ्‍ाा जो उन्‍हें भारत पर शासन करने के बदले किसी तरह सत्‍ता हस्‍तानांतरण कर इंग्‍लैड लौट जाने को मजबूर कर रहा था। खुद को नौसेना प्रमुख के रूप में देखने की उनकी इच्‍छा इतनी प्रबल थी कि भारत आने के महज 20 दिन बाद ही उन्‍होंने पत्रकारों से बात करते हुए सत्‍ता‍ हस्‍तानांतरण की नयी तारीख 15 अगस्‍त, 1947 घोषित कर दी, जो वेवेल की तय तारीख जून 1948 से एक साल पहले था। जानकारों का मानना है कि लॉर्ड लुई माउंटबेटन को जिन्‍ना की बीमारी के संबंध में जानकारी थी और वो जानते थे कि जिन्‍ना के बाद यह काम और मुश्किल हो जयेगा। अखंड भारत का सपना पूरा हो सकता था अगर लॉर्ड लुई माउंटबेटन की जगह कोई दूसरा वायसराय होता, क्‍योंकि लॉर्ड लुई माउंटबेटन के लिए भारत की आजादी अपने सपने को पूरा करने का एक जरिया था और वो जल्‍द से जल्‍द किसी भी कीमत पर भारत से लौटना चाहते थे। भारत से लौटकर लॉर्ड लुई माउंटबेटन शाही सेना के सर्वोंच्‍चय पद पर गये। 1979 में समुद्र के बीच जहाज पर अवकाश मनाने के दौरान आतंकवादियों ने उनकी हत्‍या कर दी।

वाया : इसमाद


Share this Post on :